________________
90 * कंस का जन्म तैरकर उससे बाहर निकल आये। वहां से वे इलावर्धन नामक नगर में गये। वहां पर वे एक सार्थवाह की दूकान पर बैठकर विश्राम करने लगे। इतने में कुमार के प्रभाव से उस दिन दुकानदार को लाख रुपये का मुनाफा हुआ। इससे वह दुकानदार उन्हें सोने के रथ में बैठाकर अत्यन्त सम्मानपूर्वक अपने घर ले गया। वहां उसने अपनी रत्नवती नामक कन्या से उनका विवाह कर दिया। तदनन्तर वसुदेव अपने इस श्वसुर के आग्रह से कुछ दिनों के लिए वहीं ठहर गये।
एक दिन महापुर नामक नगर में इन्द्रमहोत्सव था, इसलिए वसुदेव अपने श्वसुर के साथ एक दिव्य रथपर बैठ कर उसे देखने गये। वहां पर नगर के बाहर एक समान नये मकानों को देखकर वसुदेव ने पूछा- “यां पर सब नये ही नये मकान क्यों दिखायी देते हैं?"
सार्थवाह ने कहा- “यहां के राजा वसुदेव के सोमश्री नामक एक . कन्या है। उसके स्वयंवर के लिये यह सब मकान बनाये गये थे। स्वयंवर में अनेक राजा आये थे, परन्तु उनमें कोई विशेष चतुर न होने के कारण वे सब ज्यों के त्यों लौटा दिये गये। सोमश्री अब तक अविवाहिता ही है।" - इस तरह की बातचीत करते हुए वे दोनों जन शक्रस्तम्भ के पास पहुंचे
और उसे वन्दन कर एक और खड़े हो गये। उसी समय राजपरिवार की महिलाएँ भी रथ में बैठकर वहां आयी और शक्रस्तम्भ को वन्दनकर महल की
और लौट पड़ी। इतने ही में एक मदोन्मत हाथी जंजीर को तोड़कर वहां आ पहुंचा और भीड़ में इधर उधर चक्कर काटने लगा। यह देखते ही चारों और भगदड़ मच गयी। किसी को वह सूंढ में लपेटकर इधर उधर फेंक देता और किसी को पैर के नीचे कुचल डालता। अचानक एक बार वह राजकुमारी के रथ के पास जा पहुँचा और उसे उसने रथ से गिरा दिया। सब लोगों को तो उस समय अपने अपने प्राणों की पड़ी थी, इसलिए किसी का भी ध्यान उसकी
और आकर्षित न हुआ। बेचारी राजकुमारी को असहाय और संकटावस्था में देखकर वसुदेव वहां दौड़ आये और उस हाथी को वहां से खदेड़ने लगे। वह हाथी इससे और भी उत्तेजित हो उठा और राजकुमारी को छोड़कर वसुदेव की ही और झपट पड़ा। वसुदेव ने युक्ति से काम लेकर उस हाथी को तुरन्त अपने