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श्री नेमिनाथ-चरित * 89 अश्व का दमन कर कपिला से विवाह कर लिया। इसके बाद वे अपने श्वसुर और अपने साले अंशुमान के आग्रह से कुछ दिन वहां ठहर गये और उनका आतिथ्य ग्रहण करते रहे। इस बीच कपिला से उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम उन्होंने कपिल रक्खा। ___ एक दिन वसुदेव कुमार अपने श्वसुर की गजशाला में गये। वहां पर कौतूहल वश वे एक हाथी की पीठ पर चढ़ बैठे। किन्तु वह हाथी जमीन पर चलने के बदले उन्हें आकाशमार्ग में ले उड़ा। उसकी यह कपट लीला देख वसुदेव ने उसे एक मुक्का जमाया। मुक्का लगते ही वह एक सरोवर के तट पर जा गिरा और नीलकंठ नामक विद्याधर बन गया। यह वही विद्याधर था जो नीलयशा के विवाह के समय युद्ध करने आया था। ...यहां से वसुदेव कुमार ‘सालगुह नामक नगर में गये। वहाँ पर उन्होंने राजा भाग्यसेन को धनुर्वेद की शिक्षा दी। एक दिन भाग्यसेन के साथ युद्ध करने के लिये उसका बड़ा भाई मेघसेन नगर पर चढ़ आया, किन्तु वसुदेव कुमार ने उसे बुरी तरह मार भगाया, इस युद्ध में वसुदेव का पराक्रम देखकर दोनों राजा प्रसन्न हो उठे, भाग्यसेन ने प्रसन्न हो अपनी पुत्री पद्मावती से और मेघसेन ने अपनी पुत्री अश्वसेना से वसुदेव का विवाह कर दिया। कुछ दिनों तक उन दोनों के साथ दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर कुमार ने वहाँ से भी विदा ग्रहण की। : .
आगे बढ़ने पर वसुदेव की भद्दिलपुर नामक नगर मिला। वहां के राजा पुंढराज की मृत्यु हो गयी थी। पुंढराज के एक कन्या थी, किन्तु पुत्र एक भी न था। उस कन्या का नाम पूंढा था। वह औषधियों के प्रयोग से पुरुष का रूप धारण कर पिता का राज्य चलाती थी। वसुदेव ने बुद्धिबल से तुरन्त जान लिया कि यह पुरुष नहीं, बल्कि स्त्री है। वसुदेव को देखकर पुंढा के हृदय में भी अनुराग उत्पन्न हो गया था, इसलिये उसने वसुदेव के साथ ब्याह कर लिया। पश्चात् उसके उदर से पुंढ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो आगे चल कर उसी राज्य का अधिकारी हुआ।
___ एक दिन रात्रि के समय हंस का रूप धारण कर अंगारक विद्याधर ने कपट पूर्वक वसुदेव को गंगा नदी में फेंक दिया, किन्तु वसुदेव किसी तरह