________________
88 * कंस का जन्म इसलिए सोदास ने स्वयं इसका भार उठा लिया। वह रोज नगर से एक बालक मारकर उठा लाता था और रसोइया उसी का मांस उसे पका देता था। परन्तु इससे शीघ्र ही नगर में हाहाकार मच गया। जब यह बात उसके पिता को मालूम हुई तो उन्होंने उसकी बड़ी फजीहत की और उसे सदा के लिए अपने देश से निकाल दिया। उसी दिन से यह सोदास यहां पर चला आया था, और हमेंशा कसी न किसी को मारकर खा जाता था। आज इसके मर जाने से हमलोग सदा के लिए निश्चिन्त हो गये। इस कार्य के लिए हम लोग आप को जितना धन्यवाद दें उतना ही कम है।"
वसुदेव यह वृत्तान्त सुनकर परम आनन्दित हुए और उन समस्त कन्याओं से उन्होंने सहर्ष ब्याह कर लिया। पश्चात् एक रात्रि वहां पर रहने के बाद वह दूसरे दिन सुबह अचल नामक गांव में चले गये। वहां पर एक सार्थवाह की मित्रश्री नामक पुत्री से उन्होंने ब्याह किया। किसी ज्ञानी ने पहले से ही उस सार्थवाह को बतलाया था कि मित्रश्री का विवाह वसुदेव के साथ होगा। उसका वह वचन आज सत्य प्रमाणित हुआ। ..
वहां से वेदसाम नगर की ओर जाने पर इन्द्रशर्मा की पत्नी वनमाला से उनकी भेंट हो गयी। वसुदेव उसे देखते ही चौकन्ने हो गये, किन्तु उसने उन्हें “देवर" शब्द से सम्बोधित कर उन्हें मीठी मीठी बातों से बड़ी सान्त्वना दी और उन्हें समझा बुझाकर अपने घर लेकर गयी। वहां पर उसने अपने पिता से उनका परिचय कराया। उसने वसुदेव से कहा—"हे कुमार! इस नगर के राजा का नाम कपिल है। उनके कपिला नामक एक कन्या है। कुछ दिन पहले उसके विवाह के सम्बन्ध में पूछताछ करने पर एक ज्ञानी ने बतलाया था कि "इसका विवाह वसुदेव कुमार के साथ होगा जो इस समय गिरितट नामक नगर में रहते हैं वे यहां आने पर स्फुल्लि वदन नामक अश्व का दमन करेंगे। यही उनकी पहचान होगी।" तब से हे कुमार! राजा तुम्हारी खोज में रहते हैं। बीच में उन्होंने मेरे जामाता इन्द्रशर्मा को तुम्हें ले आने के लिये भेजा था, किन्तु तुम कहीं बीच ही से गायब हो गये। अब संयोगवश यदि तुम यहां आ गये हो, तो उस अश्व को दमनकर कपिला से विवाह कर लो। यह तुम्हारे ही हित की बात
है।"
वनमाला के पिता की यह सलाह वसुदेव ने सहर्ष मान ली। उन्होंने उस