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श्री नेमिनाथ-चरित * 87 देकर वसुदेव तृणशोषक नामक एक गांव में घुस गये और वहां के देवकुल में जाकर चुपचाप सो गये।
परन्तु बुरे समय में दीन दुःखी को कहीं भी शान्ति नहीं मिलती। उस देवकुल में भी रात के समय एक राक्षस ने आकर वसुदेव पर आक्रमण कर दिया। लाचार, वसुदेव को उससे भी युद्ध करना पड़ा। राक्षस बड़ा ही बलवान था इसलिए उसने वसुदेव को कई बार धर पटका किन्तु अन्त में वसुदेव ने मौका पाकर उसके हाथ पैर बांध दिये और जिस तरह धोबी शिला पर कपड़े पटकता है, उसी तरह उसे जमीन पर पटक कर मार डाला।
सुबह जब गांव के लोगों ने देखा कि वह राक्षस, जो नित्य उन्हें सताया करता था। देवकुल के पास मरा पड़ा है, तब उनके आनन्द का वारापार न रहा। उन्होंने वसुदेव को एक रथ में बैठाकर सारे गांव में घुमाया और इस उपकार के बदले उनसे अपनी पांच सौ कन्याओं का विवाह कर देने की इच्छा प्रकट की। इस पर वसुदेव ने कहा-“पहले मुझसे इस राक्षस का हाल कह सुनाइए, फिर मैं तुम्हारे इस प्रस्ताव पर विचार करूँगा।" ____ वसुदेव का यह प्रश्न सुनकर एक बुढ़े आदमी ने कहा—“हे कुमार! कलिदेश में कांचनपुर नामक एक नगर है। वहां पर जितशत्रु नामक राजा राज्य करता है। उसी का यह सोदास नामक पुत्र है। यह बचपन से ही मांस का लोलुप था, किन्तु राजा ने समस्त जीवों को अभयदान दे रक्खा था। इसीलिए एक दिन इसने अपने पिता से कहा- "मुझे प्रतिदिन एक मयूर का मांस अवश्य मिलना चाहिए।" पिता को यह बात बिलकुल पसन्द न थी, फिर भी पुत्र स्नेह के कारण उसने उसकी बात मान ली। उसी दिन से उसका रसोइया मंशगिरि से प्रतिदिन एक मयूर ले आने लगा। एक दिन मारे हुए मयूर को बिल्ली उठा ले गयी, इससे रसोइये ने एक मरे हुए बालक का मांस पकाकर उसे खाने को दे दिया। उस मांस को खाते समय सोदास ने पूछा- “आज यह मांस अधिक स्वादिष्ट क्यों है?"
यह सुनते ही रसोइया पहले तो डर गया, किन्तु बाद में उसने सारा हाल उससे कह सुनाया। सुनकर सोदास ने आज्ञा दी मनुष्य का ही मांस पकाया जाय। परन्तु रसोइए के लिए प्रतिदिन मनुष्य का मांस लाना संभव न था,