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श्री नेमिनाथ-चरित * 91 वश में कर लिया। पश्चात् हाथी से अलग होने पर वसुदेव कुमार ने राजकुमारी को उठा लिया और उपचार करने के लिए उसे पास के एक मकान में रख दिया। उस समय वह भय और आघात से मूर्छित हो गयी थी। पर जब उसे होश आया और वह स्वस्थ हुई तब उसकी दासियाँ उसे वासस्थान को ले गयी।
इसी नगर में रत्नवती की एक बहिन कुबेर सार्थवाह को व्याही गयी थी। उससे भेंट हो जाने पर वह वसुदेव को एवं उसके श्वसुर बड़े सम्मान पूर्वक अपने मकान पर ले गया। वहां पर उसने भोजनादिक द्वारा उनका बड़ा ही सत्कार किया। पश्चात् भोजनादिक से निवृत्त हो ज्यों ही एक कमरे में बैठे त्यों ही सोमदत्त राजा का मन्त्री वहां आ पहुंचा। उसने वसुदेव को प्रणाम कर नम्रता पूर्वक कहा-“हे कुमार! यह तो आप जानते ही होंगे, कि हमारे राजा के सोमश्री नामक एक कन्या है। पहले उसने स्वयंवर द्वारा अपना विवाह करना स्थिर किया था। परन्तु बीच में सर्वाण साधु के केवलज्ञान महोत्सव में पधारे हुए देवताओं को देखकर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया और तब से अपना वह विचार छोड़कर उसने मौनावलम्बन कर लिया हैं। ___उसकी यह अवस्था देखकर हमारे महाराज बहुत चिन्तित हो उठे, किन्तु मैं उन्हें सान्त्वना दे, एक दिन राजकुमारी से एकान्त में मिला। राजकुमारी मुझे पिता के समान ही आदर की दृष्टि से देखती है। उसने मुझसे बतलाया कि"पूर्वजन्म में मेरा पति एक देव था। और देवलोक में हम दोनों के दिन बड़े आनन्द में कटते थे। एक दिन हम लोग अरिहन्त का जन्म महोत्सव देखने के लिये नन्दीश्वरादिक की यात्रा करने गये। वहां से वापस आने पर मेरा वह पति देवलोक से च्युत हो गया। इससे मैं शोकविह्वल हो, उसे खोजती हुई भरतक्षेत्र के कुरुदेश में जा पहुंची। वहां पर दो केवलियों से मेरी भेंट हो गयी। मैंने उनसे पूछा-“हे भगवन् । क्या आप बतला सकते हैं कि मेरा पति स्वर्ग से च्युत होकर कहाँ उत्पन्न हुआ है?"
केवली ने कहा-“तुम्हारे पति ने हरिवंश के राजा के यहाँ जन्म लिया है। तुम भी देवलोक से च्युत होकर एक राजपुत्री के रूप में जन्म लोगी। तुम्हारे नगर में एक बार इन्द्र महोत्सव होगा, उसमें हाथी के आक्रमण से तुम्हें