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________________ 92 * कंस का जन्म बचाकर फिर वही तुम्हारा पाणिग्रहण करेगा।" केवली के यह वचन सुनकर मैं आनन्दपूर्वक उन्हें वन्दन कर अपने वासस्थान को चली गयी। इसके बाद स्वर्ग से च्युत होकर मैं सोमदत्त राजा के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न हुई हूँ। पहले यह सब बातें मुझे मालूम न थी, किन्तु सर्वाण साधु के केवल महोत्सव में देवताओं को देखकर मुझे जाति स्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ और यह सब बातें मुझे ज्ञात हो गयी। यही कारण है कि मैंने अब स्वयंवर का विचार छोड़कर विवाह के सम्बन्ध में मौनावलम्बन कर लिया यह सब वृत्तान्त वसुदेव को सुनाकर सोमदत्त के मन्त्री ने उनसे कहा"हे वसुदेव कुमार! यह सब बातें मैंने महाराज से बतला दी थी और उस दिन से वे शान्त हो गये थे। आज राजकुमारी को आपने हाथी से बचाया है, इसलिए राजकुमारी और महाराज आदि आप को पहचान गये हैं। उन्हीं के आदेश से मैं आप को बुलाने आया हूँ। कृपा कर आप मेरे साथ चलिये और राजकन्या का पाणिग्रहण कर उसका जीवन सार्थक कीजिए।” मन्त्री की यह प्रार्थना सुनकर, वसुदेवकुमार उसके साथ राजा सोमदत्त के पास गये और वहां पर राजकुमारी का पाणिग्रहण कर वे उसका आतिथ्य ग्रहण करने लगे। एक दिन रात्रि के समय वसुदेव ने देखा, कि शैय्या पर उनकी पत्नी का पता नहीं है। इससे वे बहुत ही दुःखित हो गये और उसकी खोज करने लगे। तीसरे दिन एक उपवन में उसे देखा तो उन्होंने कहा—“प्रिये! मुझसे ऐसा कौनसा अपराध हुआ है, जिसके कारण तुम इस तरह रुष्ट होकर मुझे परेशान कर रही हो।" कुमारी ने कहा- "हे प्राणेश! आपके कल्याणार्थ मैंने एक व्रत लिया था। जिसमें तीन दिन तक मौन रहकर वह व्रत पूर्ण किया है। अब उसकी पूर्णाहुति में केवल एक ही बात की कसर है। वह यह कि, आपको देवी का पूजन कर मुझसे पुन: पाणिग्रहण करना पड़ेगा। ऐसा करने से हम लोगों का जीवन और भी प्रेममय बन जायगा।" उसकी यह बात सुनकर वसुदेव बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने उसके कथनानुसार फिर से उसका पाणिग्रहण भी किया। यह सब काम निपटने के
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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