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श्री नेमिनाथ-चरित * 85 लाचार होकर वहीं खड़े हो गये। उस समय शाम हो चली थी, इसलिये अब कहीं ठहरने का प्रबन्ध करना आवश्यक था। इसलिए वसुदेव ने इधर उधर देखा, तो उन्हें मालूम हुआ कि वे एक व्रज (गायों को बन्द करने का स्थान) के निकट आ पहँचे हैं। वहां जाने पर गोपियों ने उनका बड़ा ही सत्कार किया और उनके सोने के लिये शैय्यादिक का प्रबन्ध कर दिया। वसुदेव ने वह रात वहीं व्यतीत की। सुबह सूर्योदय के पहले ही वे उठ बैठे हाथ मुंह धो, दक्षिण दिशा की और चल पड़े।
कुछ दूर आगे बढ़ने पर उन्हें गिरिवट नामक एक गाँव मिला उसमें जोरों के साथ वेदध्वनि हो. रही थी। एक ब्राह्मण से इस का कारण पूछने पर उसने कहा- "हे कुमार! राजा रावण के समय में दिवाकर नामक एक विद्याधर ने अपनी पुत्री का विवाह नारद ऋषि के साथ किया था ! उन्हीं के वंश का सुरदेव नामक एक ब्राह्मण इस समय इस गांव का स्वामी है। उसकी क्षत्रिया नामक पत्नी से उसे सोमश्री एक कन्या उत्पन्न हुई है, जो वेदों की अच्छी जानकार मानी जाती है। इसके व्याह के सम्बन्ध में कराल नामक एक ज्ञानी से प्रश्न करने पर उसने बतलाया, कि जो वेदपाठ में इसे जीतेगा, उसी से इसका विवाह होगा। उनका यह वचन सुनकर सुरदेव ने इसी आशय की घोषणा कर दी है। इसीलिए अनेक युवक, जो उससे व्याह करने के लिये लालायित हैं, रात दिन वेद का अभ्यास करते रहते हैं। और ब्रह्मदेव नामक एक उपाध्याय उन्हें नियमित रूप से वेदों की शिक्षा देते हैं।
वसुदेव कुमार कौतुहल प्रेमी तो थे ही, इसलिए ब्राह्मण के यह वचन सुनकर पहले की भांति यहां भी उन्हें दिल्लगी सूझी। वे तुरन्त एक ब्राह्मण का वेश धारण कर ब्रह्मदत्तं के पास पहुंचे और उससे कहने लगे कि मैं गौतम गोत्रीय स्कन्दिल नामक ब्राह्मण हूं और आप के निकट वेद पढ़ने आया हूं। ब्रह्मदत्त ने इसके लिए सहर्ष अनुमति दे दी। बस, फिर क्या था, बात की बात में उन्होंने उनके समस्त शिष्यों से बाजी मार ली और अन्त में सोमश्री को पराजितकर उससे ब्याह कर लिया।
वसुदेव कुमार अपनी इस ससुराल में भी बहुत दिनों तक आनन्द करते रहे। अन्त में एक दिन उद्यान में इन्द्रशर्मा नामक ऐन्द्रजालिक से उनकी भेंट हो