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84 कंस का जन्म
महाराज ने विद्या के बल आप को यहां बुलाकर आपके साथ उसका विवाह कर दिया है। उधर नीलकुमार के एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम उसने नीलकण्ठ रक्खा। नील ने उसके लिये नीलयशा की मंगनी की, किन्तु उसका विवाह आपके साथ हो जाने के कारण उसे निराश होना पड़ा। आज उसीने नीलकण्ठ के साथ यहां आकर बड़ा उत्पात मचाया है, किन्तु महाराज की आज्ञा से वह बाहर निकाल दिया गया है। यह कोलाहल इसीलिए मचा हुआ है, किन्तु अब डर की कोई बात नहीं है । "
वसुदेव यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और अपनी नव विवाहिता पत्नी के साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन बिताने लगे । एक दिन शरद ऋतु में अनेक विद्याधर औषधियां लेने और विद्या की साधना करने के लिये हीमान पर्वत की और जा रहे थे। उन्हें देखकर वसुदेव ने नीलयशा से कहा - " मैं भी विद्याधरों की कुछ विद्याएं सीखना चाहता हूँ। क्या तुम इस विषय में मुझे अपना शिष्य बनाकर कुछ सिखा सकती हो ?”
नीलयशा ने कहा-' -" क्यों नहीं ? चलो, हम लोग इसी समय हीमान पर्वत पर चलें। मैं वहां तुम्हें बहुत सी बातें बतलाऊँगी । "
इतना कह वह वसुदेव को अपने साथ हीमान पर्वत पर ले गयी । किन्तु वहां का रमणीय दृश्य देखकर वसुदेव का चित्त चञ्चल हो उठा। उनकी यह अवस्था देखकर नीलयशा ने एक कदली वृक्ष उत्पन्न किया और उसी की शीतल छाया में वे दोनों क्रीड़ा करने लगे। इसी समय वहां एक माया मयूर आ पहुंचा। उसका सुन्दर रूप देखकर नीलयशा उस पर मुग्ध हो गयी और उसको पकड़ने की चेष्टा करने लगी । माया मयूर कभी नजदीक आता और कभी दूर भाग जाता, कभी झाडियों में छिप जाता और कभी मैदान में निकल जाता । नीलयशा उसको पकड़ने की इच्छा से कुछ दूर निकल गयी और अन्त में जब वह उसके पास पहुंची, तब उस मयूर ने अपने कन्धे पर नीलयशा को बैठा लिया। इसके बाद वह मयूर आकाशमार्ग द्वारा न जाने कहाँ चला गया।
वसुदेव उस मयूर की यह लीला देखकर पहले तो दंग रह गये, किन्तु बाद में वे भी उस के पीछे दौड़े। उन्होंने बहुत दूर तक उसका पीछा किया और बड़ा होहल्ला मचाया, किन्तु जब वह आंखों से ओझल हो गया, तब वे