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________________ 78 * कंस का जन्म आना बहुत ही कठिन है।" ___मुनिराज के यह वचन सुनकर मैं बड़े आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि मैं तो उन्हें पहचानता न था और वे एक परिचित की भांत मुझसे बातें करते थे। यह देख, मैं उनकी और बार-बार देखने लगा। मेरी यह उलझन शीघ्र ही मुनिराज की समझ में आ गयी। उन्होंने कहा- “मेरा नाम अमितगति है। आप ने एक बार मुझे बन्धन मुक्त किया था। आपके पास से रवाना हो अष्टापद पर्वत के पास मैंने अपने उस शत्रु को पकड़ लिया। मुझे देखते ही वह मेरी स्त्री को छोड़कर पर्वत के किसी अगम्य स्थान में भाग गया। उसके भाग जाने पर मैं अपनी स्त्री को लेकर अपने वासस्थान को चला गया। इस घटना के कुछ दिन बाद मेरे पिता ने मुझे अपना राज्य भार सौंप, हिरण्यकुंभ और सुवर्णकुम्भ नामक मुनियों के निकट दीक्षा ले ली। अब मेरे दिन आनन्द में कटने लगे। मैंने दीर्घकाल तक राज्य शासन किया। इस बीच में मेरी मनोरमा नामक स्त्री ने सिंहयशा और वराहग्रीव नामक दो पुत्रों को जन्म दिया, जो मेरे ही समान पराक्रमी और गुणवान हैं। दूसरी स्त्री विजयसेना ने गन्धर्व सेना नामक एक पुत्री को जन्म दिया, जो गायन वादन और संगीत की कला में परम निपुण है। पुत्र पुत्रियों का सब सुख देखने के बाद अन्त में मैंने अपना राज्य अपने दोनों पुत्रों को सौंपकर पिताजी के निकट दीक्षा ले ली। तब से मैं यहीं रहता हूं और धर्माराधन में अपना समय व्यतीत करता हूँ। यह द्वीप कुंभकंठ के नाम से प्रसिद्ध है और लवण समुद्र में अवस्थित है। इस पर्वत को कर्कोटक कहते हैं। आशा है कि मेरे इस परिचय से आप की उलझन दूर हो गयी होगी। अब आपका यहां आना किस प्रकार हुआ सो बतालाइए।" ___ मुनिराज का यह पक्ष सुनकर मैंने अपना सब हाल उन्हें कह सुनाया। इतने ही में उन्हीं के समान दो विद्याधर वहां आ पहुँचे और मुनिराज को प्रणाम कर उनके पास बैठ गये। उनकी मुखाकृति और आकार प्रकार देखकर मैं तुरन्त समझ गया कि यह दोनों मुनिराज के पुत्र होंगे। मेरा यह अनुमान ठीक भी निकला। मुनिराज के परिचय कराने पर उन दोनों ने मुझे भी बड़े प्रेम से प्रणाम किया। इसी समय वहां पर आकाश से एक विमान उतरा। उसमें से एक देव ने उतरकर सबसे पहले तीन बार प्रदक्षिणा कर मुझे प्रणाम किया, और मेरे बाद
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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