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________________ 76 * कंस का जन्म आया, परन्तु बाहर निकलते ही मैं मूर्च्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ देर के बाद जब मुझे होश आया, तो मैंने काल के समान एक जंगली भैंसे को अपनी ओर आते देखा । उसकी लाल लाल आँखें, बड़े बड़े सींग और विकराल रूप देखकर मैं बेतरह डर गया और एक शिला पर चढ़ बैठा। वह भैंसा मुझे देखकर उस शिला के पास दौड़ आया और बड़े वेग से उसे ठोकरें मारने लगा । यदि मैं शिला पर न चढ़ गया होता और उसकी एक भी ठोकर मेरे लग जाती, तो मैं निःसन्देह वहीं ढेर हो जाता । इसी समय एक और आश्चर्यजनक घटना इस प्रकार घटित हुई कि, उस शिलापर ठोकरें मारते हुए उस भैंसे का पैर पीछे से एक अजगर ने पकड़ लिया। इससे भैंसे का ध्यान मेरी और से हटकर उसकी और चला गया। इसके बाद ज्योंही उन दोनों में खींचातानी होने लगी, त्योंही मैं उस शीला से कूदकर एक तरफ भागा। भागते भागते मैं जंगल के उस पार' एक गांव में जा पहुँचा। वहां पर मेरे मामा का रुद्रदत्त नामक एक मित्र रहता था । उसने मुझे आश्रय देकर मेरी सेवासुश्रुषा की। जब मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हुआ, तब रुद्रदत्त के साथ व्यापार में स्थित हुआ। हम लोगों ने करीब एक लाख रुपये अपने साथ लेकर सुवर्णभूमि के लिए प्रस्थान किया । मार्ग में हमें इषुवेगवती नामक एक नदी: मिली। उसे पारकर हमलोग गिरिकूट ( पर्वत के शिखर) पर पहुँचे। वहां से वेत्रवन में होकर हम लोगों ने टंकणप्रदेश में पदार्पण किया। यहां का मार्ग ऐसा था कि जिस पर केवल बकरे ही चल सकते थे, इसलिए हम लोगों को दो बकरे खरीद कर उन्हीं पर सवारी करनी पड़ी। यह बकरों का रास्ता पार कर हमलोग और भी विकट स्थान में जा पहुँचे। वहां पर रुद्रदत्त ने कहा- “ यहां से आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं है । चारों और विकट पहाड़ियाँ और नदी नालों की भरमार हैं अब हमें इन बकरों को मारकर इनकी खाल अपने शरीर पर लपेट लेनी होगी। ऐसा करने पर भारण्ड पक्षी हमलोगों को मांस के धोखे से सुवर्णभूमि में उठा ले जायेंगे। वहां पहुँचने का यही तरीका है और इसी तरीके से सब लोग काम लेते हैं । " बकरों को मारने की बात सुनकर मेरा तो कलेजा ही काँप उठा। मैंने
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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