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________________ 70 * कंस का जन्म गन्धर्वसेना और उनके विवाह का आयोजन किया गया। ब्याह के समय चारुदत्त ने पूछा- “हे वत्स! तुम्हारा कौन गोत्र है?" वसुदेव ने हंसकर कहा-"आप जो समझ लें वही गोत्र है।" चारुदत्त ने इसे उपहास समझ कर कहा-“गन्धर्वसेना को वणिक पुत्री मानकर आप उपहास कर रहे हैं, किन्तु इसके कुलादिक का वास्तविक वृतान्त मैं फिर किसी समय आप को सुनाऊँगा।" खैर, किसी तरह उन दोनों का विवाह निपट गया। चारुदत्त ने इस समय बड़ा उत्सव मनाया और दानादिक में प्रचुर धन व्यय किया। सुग्रीव और यशोग्रीव ने भी वसुदेव के गुणों पर मुग्ध हो अपनी श्यामा और विजया नामक दो कन्याओं का उनसे विवाह कर दिया। वसुदेव अपनी इन नव विवाहित पत्नियों के साथ अपने दिन सुखपूर्वक व्यतीत करने लगे। .. ____ एक दिन अवकाश के समय चारुदत्त ने वसुदेव कहा- "वत्स! मैंने तुमसे व्याह के समय कहा था कि गन्धर्व सेना के प्रकृत कुल का परिचय मैं तुम्हें फिर किसी समय दूंगा। आज तुम्हें वह वृत्तान्त सुनाता हूँ, ध्यान देकर सुनो ___ एक समय इसी नगरी में भानु नामक एक महा धनवान व्यापारी रहता था। उसके सुभद्रा नामक एक स्त्री भी थी, किन्तु सन्तान न होने के कारण वे दोनों बहुत दुःखित रहते थे। एक बार उन्होंने एक चारण मुनि से पूछा कि हे महाराज! क्या हम भी कभी पुत्र का मुख देखकर अपने को धन्य समझेंगे? मुनिराज ने कहा, "हां, तुम्हारे पुत्र अवश्य होगा, किन्तु अभी कुछ समय की देरी है। मुनिराज के इन वचनों से उन्हें आशा बँध गयी। कुछ दिनों के बाद वास्तव में उनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जो मैं हूँ। इससे उन दिनों के जीवन में एक नया ही आनन्द आ गया। एक दिन मैं सिन्धु नदी के तट पर घूमने गया था। वहां पर किसी आकाशगामी पुरुष के सुन्दर चरण चिन्ह मुझे दिखायी दिये। ध्यान पूर्वक देखने पर मुझे मालूम हुआ कि उन चरण चिन्हों में किसी स्त्री के भी चरण चिन्ह सम्मिलित हैं। इससे मैं समझ गया कि उस पुरुष के साथ कोई स्त्री भी होगी। वहां से आगे बढ़ने पर एक स्थान में मुझे एक कदली गृह, पुष्पशैय्या, ढाल और तलवार आदि चीजें दिखायी दी। उसके पास ही एक वृक्ष में कोई
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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