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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 69 और यदि वैसा न हो तो आप उसे अपनी संगीतकला से जीत लीजिएगा।" वसुदेव सहपाठियों की दिल्लगी पर ध्यान न दे, वे उन्हें हँसाते हुए उनके साथ सभास्थान में पहुँचे। वहां भी उनके सहपाठियों ने उनकी दिल्लगी कर उन्हें एक ऊंचे स्थान में बैठा दिया। यथा समय गन्धर्वसेना सभा में उपस्थित हुई। वाद विवाद आरंभ हुआ। सभा में देश विदेश के धुरन्धर संगीत शास्त्री उपस्थित थे। परन्तु गन्धर्वसेना ने सबको मात कर दिया। गाने, बजाने या संगीत विषयक वाद-विवाद करने में कोई भी उसके सामने न ठहर सका। __अन्त में वसुदेव की बारी आयी। गन्धर्व सेना ज्यों ही उनके सामने पहुँची। त्योंही उन्होंने अपना असली रूप प्रकट कर दिया। उनका यह रूप देखते ही गन्धर्व सेना उन पर मुग्ध हो गयी। यह देख उनके सहपाठियों पर तो मानों घड़ों पानी पड़ गया। जिसने वसुदेव का वह अलौकिक रूप देखा, उसीने दांतों तले अंगुली दबा ली। गन्धर्व सेना ने उनसे वीणा बजाने को कहा, किन्तु वसुदेव के पास वीणा न.थी, इसलिए सभा के अनेक लोगों ने उन्हें अपनी . वीणा दी, परन्तु वसुदेव ने वीणाओं में दोष दिखा-दिखाकर उन्हें वापस दे दी। अन्त में गन्धर्व सेना ने स्वयं अपनी वीणा दी। वसुदेव ने उसे निर्दोष बतलाकर गन्धर्व सेना से पूछा- “हे सुन्दरी! अब कहो, तुम किस विषय का संगीत सुनना चाहती हो?" गन्धर्व सेना ने कहा- "हे संगीतज्ञ! इस समय महापद्म चक्रवर्ती के ज्येष्ट बन्धु विष्णु कुमार के त्रिविक्रम विषयक संगीत सुनने की मेरी इच्छा है।" बस उसके कहने की ही देर थी। उसी क्षण वीणा की मधुर झंकार और संगीत की सुन्दर ध्वनि से सभास्थान गूंज उठा। लोग मन्त्र मुग्ध होकर शिर हिला-हिलाकर वसुदेव का गायन, वादन, सुनते रहे। किसी भी छिद्रान्वेषी को उसमें कोई छिद्र दिखायी न दिया। परीक्षकों ने उसे निर्दोष और अद्वितीय बतलाया। गन्धर्वसेना की कौन कहे, बड़े बड़े संगीताचार्यों ने भी उनके सामने हार मान ली। ___ जब वसुदेव की विजय में कोई सन्देह न रहा, तब चारुदत्त सभा विसर्जन कर उन्हें सम्मान पूर्वक अपने मकान पर लेकर गये। वहां पर
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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