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68 * कंस का जन्म दिखायी देते थे। इसलिए उन्होंने ब्राह्मण से उसका कारण पूछा। उसने बतलाया कि यहां चारुदत्त नामक एक सेठ है। उसके गन्धवर्सना नामक एक कन्या है जो रूप और गुण में अपना शानी नहीं रखती। उसने प्रतिज्ञा की है कि जो संगीतकला में और खासकर वीणा वादन में मुझे पराजित करेगा, उसी से मैं ब्याह करूंगी। इसीलिए यह सब युवक वीणा बजाने का अभ्यास कर रहे हैं। सुग्रीव और यशोग्रीव नामक दो प्रसिद्ध संगीताचार्य नियमित रूप से इन युवकों को संगीत की शिक्षा देते है। और प्रतिमास परीक्षा लेकर योग्यता की जांच भी करते हैं।"
ब्राह्मण से यह वचन सुनकर वसुदेव ब्राह्मण का वेश धारण कर सुग्रीव के पास गये। ____ उन्होंने उनसे कहा-“हे गुरुदेव! मैं बहुत दूर से आप का नाम सुनकर आप के पास आया हूँ। मेरा नाम स्कन्दिल, जाति ब्राह्मण और गोत्र गौतम है। गन्धर्व सेना को जीतने के लिए मैं आपके निकटं संगीत सीखना चाहता हूँ। दयाकर मुझे भी आप अपनी शिष्य मण्डली में स्थान दीजिए!" __ ब्राह्मण वेशधारी वसुदेव के यह वचन सुनकर संगीताचार्य सुग्रीव ने एक बार नीचे से ऊपर तक उसे देखा। उसका वेश देखकर उन्होंने मोटी बुद्धि से उसे मूर्ख समझ लिया और बड़े अनादर से उसे अपने पास रक्खा। परन्तु वसुदेव ने इन सब बातों की कोई परवाह न की। वे ग्राम्य भाषा बोल बोलकर सारा दिन लोगों को हँसाते। अपना प्रकृत परिचय तो उन्होंने किसी को दिया ही नहीं। सब लोग उन्हें ग्रामीण और गँवार समझकर सदा उनकी दिल्लगी करते और उन्हें उपेक्षा की दृष्टि से देखते।
कुछ दिनों के बाद वाद विवाद का दिन आ पहुँचा। समस्तं युवकों ने उत्तमोत्तम गहने कपड़े पहनकर सभास्थान की और जाने की तैयार की। वसुदेव के पास श्यामा का दिया हुआ एक ही वस्त्र था। सुग्रीव की पत्नी को यह बात मालूम थी, इसलिए उसने वसुदेव को पास बुलाकर बड़े प्रेम से उसे दो वस्त्र प्रदान किये। वसुदेव भी इन वस्त्रों को पहनकर सभा में जाने को तैयार हुए। उनका विचित्र वेश देखकर उनके सहपाठियों ने कहा-“आप हमारे साथ जरूर चलिए। गन्धर्व सेना बहुत करके तो आप के रूप पर ही मुग्ध हो जायगी