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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 67 मुनिराज के इन वचनों पर विश्वास कर मेरे पिता यहां पर चले आये। उसी समय से यह नगर बसाकर वे यहां पर निवास करते हैं। आप की खोज में वे प्रतिदिन जलावर्त पर दो विद्याधरों को भेजा करते थे। जिस दिन आपने उसे पराजित कर उस पर सवारी की, उस दिन वे आप को पहचान कर यहां पर ले आये और इसीलिए मेरे पिता ने आपके साथ मेरा विवाह कर दिया। मैं जानती हँ कि अंगारक आप को यहां चैन से न बैठने देगा। साथ ही मुझे यह भी मालूम है कि धरणेन्द्र और विद्याधरों ने मिलकर यह निर्णय किया है कि आहेत चैत्य के निकट और साधु के समीप अवस्थित स्त्री सहित इन्हें जो मारेगा, वह विद्या रहित हो जायगा। हे स्वामिन्। इन्हीं सब कारणों से मैंने यह वर मांगा है। मेरी धारणा है कि इससे अंगारक अब आप को अकेला न मार सकेगा।" ___श्यामा के यह वचन सुनकर वसुदेव को बड़ा ही आनन्द हुआ। अब वे सुखपूर्वक वहीं रहते हुए अपने दिन निर्गमन करने लगे। एक दिन रात्रि के समय जब वे अपनी पत्नी के साथ सो रहे थे, तब अचानक वहां अंगारक आया और उन्हें उठाकर वहां से चल पड़ा। इससे तुरन्त वसुदेव की निद्रा भंग हो गयी। वे अपने मन में सोचने लगे कि मुझे यह कौन उठाये लिये जा रहा है ? इतने ही में उन्हें हाथ में खड्ग लिये हुए श्यामा दिखायी दी। अंगारक ने उसे देखते ही अपनी तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले। यह हृदय विदारक दृश्य देखकर वसुदेव काँप उठे और उनसे मुख से एक चीख निकल पड़ी। किन्तु दूसरे ही क्षण उन्होंने देखा कि दो श्यामाएं दोनों और से अंगारक के साथ युद्ध कर रही हैं। यह देखकर वसुदेव ने समझा कि यह सब झूठी माया है। उन्होंने उसी समयं अंगारक के शिर पर एक ऐसा घूसा जमाया कि वह पीड़ा से तिलमिला उठा। उसने तुरन्त वसुदेव को छोड़ दिया। वसुदेव चम्पानगरी के बाहर एक सरोवर में जा गिरे, किन्तु सौभाग्यवश उन्हें कोई चोट न आयी। वे तैरकर उसके बाहर निकल आये। समीप में ही एक उपवन था। उसमें श्री वासुपूज्य भगवंत का चैत्य था। उसी में प्रवेश कर वसुदेव ने भगवंत की वन्दना की और वहीं पर वह रात बितायी। - सुबह एक ब्राह्मण से वसुदेव की भेंट हो गयी। वे उसके साथ चम्पानगरी में गये। वहां पर बाजार में वे जहां देखते वहीं उन्हें युवकगण वीणा बजाते हुए
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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