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66 * कंस का जन्म वसुदेव को हाथी पर बैठे देखकर उन्हें कुञ्जरावर्त्त उद्यान में उठा ले गये। वहां विद्याधरों के राजा अशनिवेग ने अपनी श्यामा नामक कन्या से उनका विवाह कर दिया। वसुदेव अब वहीं पर आनन्द पूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे।
वसुदेव की यह पत्नी वीणा बजाने में बहुत ही निपुण थी। उसकी इस कला से प्रसन्न हो वसुदेव ने उसे वर मागने को कहा। इस पर श्यामा ने कहा-“यदि आप वास्तव में प्रसन्न है और मुझे मनवांछित वर देना चाहते हैं, तो मुझे ऐसा वर दीजिए कि आपका और मेरा कभी वियोग न हो।"
वसुदेव ने कहा-"तथास्तु-ऐसा ही होगा, किन्तु हे सुन्दरी। यह तो बताओ कि तुमने क्या सोचकर यह वर मांगा है ? तुम इससे अच्छा कोई और वर भी मांग सकती थी।"
श्यामा ने कहा—“नाथ! अवश्य ही यह वर मांगने का एक खास कारण है। वह मैं आपको बतलाती हूँ, सुनिये। अर्चिमाली नामक एक राजा था। उसके ज्वलनवेग और अशनिवेगं नामक. दो पुत्र थे। ज्वलनवेग को अपना राज्यभार सौंपकर अर्चिमाली ने दीक्षा ले ली। कुछ दिनों के बाद ज्वलनवेग की विमला नामक रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नामक अंगारक रक्खा गया। मैं अशनिवेग की पुत्री हूँ। मेरी माता का नाम सुप्रभा था। कुछ दिनों के बाद ज्वलनवेग अपने भाई अशनिवेग को अपना राज्य देकर स्वर्ग चले गये। अंगारक को यह अच्छा न लगा और उसने अपनी विद्या के बल से अशनिवेग को बाहर निकाल कर राज्य पर अधिकार जमा लिया। ___ इस घटना से खिन्न हो मेरे पिता अष्टापद पर्वत पर चले गये। वहां पर अंगिरस नामक एक चारणमुनि ने उनकी भेंट हो गयी। उन्होंने उससे पूछा"हे मुनिराज! मेरा राज्य मुझे कभी वापस मिलेगा या नहीं?" __मुनिराज ने कहा- "तुम्हारा राज्य तुम्हें अवश्य वापस मिलेगा, किन्तु वह तुम्हारे दामाद की सहायता से मिलेगा।"
इसपर मेरे पिता ने पुन: पुछा-“हे मुनिराज! क्या आप दया कर यह भी बतला सकते हैं कि मेरा दामाद कौन होगा?"
मुनिराज ने कहा—“जो जलावर्त्त के पास हाथी को जीतेगा, वही तुम्हारा दामाद होगा। यही उसकी पहचान है।"