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________________ 64* कंस का जन्म कुछ गन्ध-द्रव्य लिये आ रही थी। उस समय वसुदेव ने उसे रोक कर पूछा, कि.-"यह गन्ध द्रव्य किसके लिए लायी हो ? कुब्जा ने उत्तर दिया-“हे कुमार! यह गन्ध शिवादेवी ने समुद्र विजय के लिए भेजा है।" . ___ "तब तो यह मेरे भी काम आयगा।" यह कहते हुए दिल्लगी के साथ वसुदेव ने उसे छीन लिया। छीनते ही वह दासी नाराज हो गयी। उसने धुड़क कर कहा-“तुम में यह कुलक्षण हैं, इसीलिए तो तुम बन्धन में पड़े हो!" __ वसुदेव ने चौंककर पूछा- “बन्धन कैसा? क्या मैं किसी बन्धन में पड़ा हूँ?" दासी पहले तो कुछ भयभीत हुई, किन्तु बाद में वसुदेव की बातों में आकर उसने महाजनों की शिकायत का सारा हाल उसे कह सुनाया। स्त्रियों के हृदय में छिपी बात अधिक समय तक रह ही कैसे सकती है? वसुदेव ने उसे तो गन्ध द्रव्य देकर विदा कर दिया किन्तु वह स्वयं गहरी चिन्ता में पड़ गया। वह अपने मन में कहने लंगा,-"मेरे बड़े भाई को शायद यह सन्देह हो गया है कि मैं स्त्रियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ही नगर में घूमा करता हूँ और इसीलिए उन्होंने मुझे बाहर न जाने की सलाह दी है। यह बहुत ही बुरी बात है। ऐसी अवस्था में यहां रहना भी मेरे लिये अपमानजनक है!" , ___इस प्रकार विचारकर शाम के समय गुटिका द्वारा वेश बदलकर वसुदेव नगर के बाहर निकल गया। नगर के बाहर एक श्मशान था। वहां चिता तैयार कर उसने किसी अनाथ की लाश उसमें जला दी। इसके बाद स्वजनों को शान्त करने के उद्देश्य से एक कागज में दो श्लोक लिखकर उसे पास के खंभे में लटका दिया। वे श्लोक यह थे दोषत्वेनाभ्यधीयन्त, गुरूणां यद्गुणा जनैः। इतिजीवन् मृतंमन्यो, वसुदेवेऽनले विशत्॥ ततः सन्तमसन्तं वा, दोषं मे स्ववितर्कितम्। सर्वे सहध्वं गुरवः, पौरलोकाश्च मूलतः॥ अर्थात्- "गुरुजनों के समक्ष महाजनों ने गुणों को दोष रूप में प्रकट किये इसलिए मैंने अपने को जीवन्मृत मानकर अग्नि में प्रवेश कर लिया है।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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