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________________ 62 * कंस का जन्म इसके बाद राजा समुद्रविजय ने सिंहस्थ को जरासन्ध के हाथों में सौंप दिया। साथ ही उसे कंस की वीरता का सारा वृत्तान्त भी कह सुनाया। जरासन्ध उसे सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुआ और उसने जीवयशा का विवाह कंस के साथ कर दिया। पाठकों को स्मरण होगा कि जरासंध ने विजेता को मन पसन्द नगरी भी देने को कहा था। कंस अपने पिता से असन्तुष्ट हो गया था। इसलिए उसने जरासन्ध से मथुरा नगरी की याचना की। जरासन्ध ने उसकी यह इच्छा भी पूर्ण कर दी। कंस का मनोरथ पूर्ण हो गया। अब वह वणिक पुत्र मिटकर राजवंशी बन गया। ___ मथुरा नगरी पुरस्कार में पाने के बाद कंस ने जरासंध से सेना लेकर अपने पिता उग्रसेन राजा पर आक्रमण कर दिया और अपने पिता उग्रसेन को गिरफ्तार कर एक पीजड़े में बन्द कर दिया। उग्रसेन के अतिमुक्त नामक और भी एक पुत्र था, किन्तु उसे पिता की दुर्गति देखकर वैराग्य आ गया, अत: उसने दीक्षा ले ली। इसके बाद कंस ने शौर्यपुर से अपने पालक पिता सुभद्र, को बुलाकर उसके निकट बड़ी कृतज्ञता प्रकट की और उसे स्वर्णादिक देकर बहुत सम्मानित किया। - - एक दिन धारिणी रानी ने अपने पति को छोड़ देने के लिए कंस से बड़ी विनय अनुनय की, परन्तु उसका कोई फल न हुआ। जब कंस ने किसी तरह उग्रसेन को न छोड़ा तब रानी धारिणी कंस के मित्रों के यहां जा जाकर कहने लगी कि मैंने ही कंस को काँसे की सन्दूक में बन्दकर नदी में फिंकवा दिया था। राजा उग्रसेन को तो यह बात मालूम भी न थी। वे सर्वथा निरपराधी थे। वास्तविक अपराधिनी तो मैं ही हूँ, इसलिए कंस से कहिए कि जो दण्ड देना हो, वह मुझे दे और महाराज को बन्धन मुक्त कर दें। ___ कंस के मित्रों ने यह सब बातें कंस को बतलाकर उग्रसेन को बन्धन मुक्त . कर देने के लिए उस पर बहुत जोर डाला। परन्तु पूर्वजन्म के निदान के कारण उसका कोई फल न हुआ। कंस के निकट जो कोई राजा उग्रसेन का नाम लेता, उससे भी कंस असन्तुष्ट हो जाता, इसलिए धीरे धीरे लोगों ने उस विषय की चर्चा भी करनी बन्द कर दी। उधर सिंहरथ को बन्दी बनाने में यथेष्ट सहायता करने के कारण
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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