________________
श्री नेमिनाथ - चरित 59
अपने विचित्र दोहद के कारण रानी पहले से ही उस पुत्र से डर गयी थी, . इसलिए उसका जन्म होते ही उसने उसे कांसे की एक सन्दूक में बन्द कर, उसमें राजा तथा अपने नाम की मुद्रिकाए तथा पत्र रख, उसे एक दासी द्वारा यमुना नदी में फिंकवा दिया। यह समाचार राजा उग्रसेन को मालूम न हो सका। रानी ने उनसे कहला दिया कि पुत्र का जन्म होते ही उसकी मृत्यु हो गयी और राजा ने भी इसे सच मान लिया ।
उधर वह सन्दूक पानी में बहती हुई शौर्यपुर के निकट जा पहुँची वहां सुभद्र नामक एक व्यापारी ने, जो शौचकर्म के लिए वहां गया था, उस सन्दूक को देखा। उसने तुरन्त उसे बाहर निकाल, उसे खोलकर देखा तो उसमें से राजा रानी के नाम की दो मुद्रिकाएं, वह पत्र और बालचन्द्र के समान उस बालक को पाया। उस वणिक की पत्नी मृतवत्सा थी । उसके बच्चे न जीते थे, इसलिए उस बच्चे को वह आनन्दपूर्वक अपने घर ले गया । वणिक पत्नी भी उस रूपवान बालक को देखकर प्रसन्न हो उठी। उन दोनों ने बड़े प्रेम से उस 1. बच्चे को रख लिया और उसका नाम कंस रक्खा ।
दम
कंस जब बड़ा हुआ तो वह बड़ा ही उत्पाती निकला । वह मौहल्ले के समस्त बालकों से झगड़ा और मारपीट करता । उससे आये दिन सुभद्र को उलाहने मिलने लगे। धीरे धीरे कंस की अवस्था दस वर्ष की हुई, परन्तु इतने ही समय में उसके उत्पातों के कारण उसके पालक माता पिता की नाकों में आ गया। अन्त में उससे आजिज आकर सुभद्र ने वसुदेव कुमार के यहां उसे नौकर रखवा दिया। यहां पर कंस का सितारा चमका। वह वसुदेव कुमार का प्रिय पात्र बन गया वसुदेव के साथ ही खेलते वह यौवनावस्था को प्राप्त हुआ • वे दोनों एक राशि में स्थित सोम और मंगल की भांति शोभा देने लगे ।
उधर शुक्तिमती नगरी में वसुराजा के पुत्र सुवसुराज राज्य करते थे, परन्तु किसी कारणवश वहाँ से भागकर वे नागपुर में जा बसे। वहां पर उनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम बृहद्रथ रक्खा गया। वह बड़ा होने पर • राजगृह में जा बसा । वहाँ उसके वंश में जयद्रथ नामक एक राजा हुआ । उसके जरासंध नामक एक प्रति वासुदेव पुत्र था। वह तीनों खण्ड का स्वामी और परम प्रतापी था। एक दिन उसने किसी दूत द्वारा राजा समुद्रविजय को कहला