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छठा परिच्छेद कंस का जन्म
एक दिन राजा उग्रसेन बगीचे की सैर करने जा रहे थे। उस समय उन्होंने मार्ग में एक मासोपवासी तापस को देखा। उस मुनि ने यह व्रत ले रखा था कि मैं पारणे के दिन केवल एक ही घर की भिक्षा ग्रहण करूँगा, दूसरे घर की नहीं। इस नियमानुसार वह प्रतिमास केवल एक ही बार भिक्षा माँगने निकलता और एक घर में जो कुछ मिल जाता, उसी से पारणा कर वह पुन: अपने वासस्थान को लौट जाता। दूसरे घर में वह कभी भिक्षा नहीं माँगता था। । राजा उग्रसेन में उस तापस को देखकर उसे अपने यहां भोजन करने निमन्त्रण दे दिया। तापस निमन्त्रण स्वीकार कर यथासमय राजा के यहां आया, परन्तु राजा निमन्त्रण की बात बिल्कुल ही भूल गये थे, इसलिए राज मन्दिर में किसी ने उनका भाव भी न पूछा और वह बिना भोजन किये ही अपने वासस्थान को लौट गया। वहाँ पहुँचने पर उसने पारणे किये बिना ही दूसरे मास का उपवास आरम्भ कर दिया। - दूसरे महीने में पुन: राजा उग्रसेन एक दिन उधर से जा निकले। तापस को देखकर उन्हें उसके निमन्त्रण की बात याद आ गयी। उन्होंने उसके पास जाकर अपनी इस भूल के लिए बहुत ही नम्र शब्दों में उससे क्षमा प्रार्थना की
और पुनः पारणे के दिन अपने यहां भोजन के लिए उसे निमन्त्रित किया। परन्तु पहले की भांति वे फिर यह बात भूल गये और तापस को बिना भोजन किये ही वापस लौट जाना पड़ा ज्यों ही राजा को अपनी यह भूल मालूम हुई, त्यों ही वे फिर उस तापस के पाय गये और अपनी भूल के लिए क्षमा प्रार्थना