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श्री नेमिनाथ - चरित 53
मेहनत मजदूरी कर किसी तरह अपना पेट भरने लगा। उसकी यह दुरावस्था देखकर एक दिन उसके मामा को उस पर दया आ गयी और वह उसे अपने घर लेकर गया। उसके सात कन्याएँ थी, जिनकी अवस्था विवाह करने योग्य हो चुकी थी। उसने नन्दिषेण से कहा – “ इनमें से सब से बड़ी कन्या का विवाह मैं तुम्हारे साथ कर दूँगा । तुम आनन्द से घर में रहो और घर का कामधन्धा देखो !”
विवाह के इस प्रलोभन से नन्दिषेण प्रसन्न हो उठा और घर के छोटे बड़े सभी काम बड़े चाव से करने लगा। परन्तु उस के मामा की बड़ी कन्या को जब यह बात मालूम हुई, तो वह कहने लगी कि पिताजी यदि मेरा विवाह नन्दीषेण से करेंगे, तो मैं आत्महत्या कर अपना प्राण दे दूँगी। उसकी इस प्रतिज्ञा से नन्दिषेण की आशा पर पानी फिर गया। फलत: वह बहुत उदास रहने लगा। उसकी यह अवस्था देखकर उसके मामा ने कहा- ' - "हे नन्दिषेण ! तुझे उदास होने की जरूरत नहीं । यदि मेरी पहली कन्या तुझ से विवाह नहीं करेगी, तो मैं दूसरी कन्या से तेरा विवाह कर दूँगा ।" परन्तु एक के बाद एकसभी कन्याओं ने इसी तरह की प्रतिज्ञा कर ली । किसी को भी कुरूप नन्दिषेण से विवाह करना मंजूर न था । यह देखकर उसके मामा ने कहा - ' - "हे नन्दीषेण ! मेरी कन्याएँ तुझ से विवाह नहीं करना चाहती तो कोई हर्ज नहीं, मैं * किसी दूसरे की कन्या से तेरा विवाह करवा दूँगा । "
इस प्रकार नन्दिषेण के मामा ने तो उसे बहुत सान्त्वना दी, परन्तु नन्दिषेण अपने मन में कहने लगा कि “जब मेरी कुरूपता के कारण मामा की ही कन्याएँ मुझे नहीं चाहती और मुझसे दूर भागती है, तब दूसरे की कन्याओं का क्या भरोसा ? मुझे अब वैवाहिक सुख की आशा ही न करनी चाहिए । यदि यह सुख मेरे भाग्य में लिखा होता, तो भगवान ने मुझे सुन्दरता और सौभाग्य भी दिया होता। "
इस तरह के विचार करते करते नन्दिषेण को वैराग्य आ गया और वह अपने मामा का काम छोड़कर रत्नपुर चला गया। वहां पर स्त्री-पुरुषों को क्रीड़ा करते देख वह पुनः अपनी निन्दा करने लगा । उसे अब अपना जीवन दुःखमय और असार मालूम होता था वह आत्महत्या करने के विचार से एक