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________________ 52 * हरिवंश और नवाँ जन्म था। शूर के शौरि और सुवीर नामक दो पुत्र हुए यथा समय शोरि को अपना राज्यासन और सुवीर को युवराज पद देकर शूर राजा ने दीक्षा ले ली। कुछ दिनों के बाद मथुरा का राज्य सुवीर को देकर शौरि कुशार्त्तदेश को चला गया और वहां पर उसने शोर्यपुर नामक एक नगर बसाया। शौरि राजा के अन्धकवृष्णि और सुवीर के भोजवृष्णि आदि कई भाग्यशाली पुत्र हुए, जिन्होंने संसार में बड़ी नामना प्राप्त की। कुछ दिनों के बाद मथुरा का राज्य भोजवृष्णि को देकर सुवीर सिन्धु देश. को चला गया और वहां सौवीरपुत्र नामक नगर बसाकर वहाँ उसने निवास किया। शोरि राजा ने अन्धक वृष्टि को अपना राज्य देकर सुप्रतिष्ठ मुनि के पास दीक्षा ले ली और बहुत दिनों तक जप तप कर वह मोक्ष का अधिकारी हुआ। .. यथा समय भोजवृष्णी के उग्रसेन नामक पुत्र हुआ और अन्धक. वृष्णि के सुभद्रा देवी से दस पुत्र हुए जो समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमित सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव आदि नाम से प्रसिद्ध हुए। ये दस भाई संसार में दशाह नाम से भी सम्बोधित किये जाते थे। उनके कुन्ती और माद्री नामक दो छोटी बहनें थी। कुन्ती का विवाह राजा पाण्डु और माद्री का विवाह राजा दमघोष के साथ हुआ था। ____ एक दिन राजा अन्धकवृष्णि ने सुप्रतिष्ठ नामक अवधि ज्ञानी मुनि से पूछा- "हे स्वामिन् ! मेरा दसवाँ पुत्र वसुदेव इतना रूपवान, गुणवान और भाग्यशाली क्यों है? यही सब बातें उसके दूसरे भाईयों में क्यों नहीं पायी जाती? सुप्रतिष्ठ मुनि ने कहा:- "हे राजन् ! इसका एक कारण है जो मैं तुझे बतलाता हूँ। सुनो, “वसुदेव का पूर्व भव" एक समय मगध देश के नन्दी ग्राम में एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नामक सोमिला और उसके पुत्र का नाम नन्दिषेण था। नन्दिषेण का भाग्य बहुत ही मंद था। इसलिए बाल्यावस्था में ही उसके माता पिता का देहान्त हो गया। नन्दिषेण कुरूप था, और उसके राशीग्रह भी खराब थे, इसलिए अन्याय रिश्तेदारों ने भी उसका त्यागकर दिया। लाचार, नन्दिषेण
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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