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________________ 50 सातवाँ और आठवाँ भव सेवा में उपस्थित हो उन्हें भक्ति पूर्वक वन्दन कर, उनका धर्मोपदेश सुना। धर्मोपदेश सुनने के बाद उन्होंने कहा - 'हे भगवान् ! जैन धर्म के प्रभाव से यह बात मैं भली भांति समझ गया हूँ कि इस संसार में कोई किसी का सगा या संबंधी नहीं है। फिर भी मुझे इस यशोमती पर इतना ममत्व क्यों है, यह मैं जानने के लिये बहुत उत्सुक हो रहा हूं।" केवली भगवान ने कहा—' - "हे राजन् ! यशोमती पहले जन्म में तुम्हारी धनवती नामक स्त्री थी। इसके बाद सौधर्म देवलोक में तुम दोनों को देवत्व की प्राप्ति हुई और वहां भी तुम दोनों में बड़ा प्रेम रहा । फिर चित्रगति के जन्म में वह रत्नवती के नाम से तुम्हार पत्नी हुई। वहां से माहेन्द्र देवलोक में पहुंच कर तुम दोनों देवता हुए। उसके बाद जब तुमने अपराजित के नाम से जन्म लिया, तब वह प्रीतिमती के नाम से तुम्हारी स्त्री हुई। वहां से तुम दोनों आरण देवलोक में पहुँचे और वहां एक दूसरे के मित्र हुए। वहां से च्युत होने पर सातवें जन्म में तुम शंखकुमार हुए और वह यशोमती के नाम से तुम्हारी पत्नी हुई । इन्हीं सब पूर्वसम्बन्धों के कारण उस पर तुम्हारा अधिक प्रेम है। “अब तुम यहां से अपराजित नामक अनुत्तर विमान में जाओगे, और वहां से च्युत होने पर तुम भरत क्षेत्र में नेमिनाथ नामक बाईसवें तीर्थकर होगे और यह यशोमती राजीमती के नाम से जन्म लेगी । उस जन्म में तुम इससे विवाह नहीं करोगे, फिर भी वह तुम पर अनुराग रक्खेगी और तुम्हारे पास दीक्षा ग्रहण कर परमपद प्राप्त करेगी । " केवली भगवान के यह वचन सुनकर शंखकुमार को वैराग्य आ गया और उन्होंने अपने पुण्डरीक नामक पुत्र को अपना राज्य सौंपकर केवली भगवान के निकट दीक्षा ले ली। उनके दोनों लघु बन्धु, मन्त्री और रानी यशोमती ने भी उनका अनुकरण किया, यानी उन लोगों ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। दीर्घकाल तक जप तप करने के बाद शंखकुमार गीतार्थ हुए। उसके बाद अरिहन्त भक्ति तथा वीस स्थानकों की आराधना करने से उन्होंने तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया। अन्त में पादोपगमन अनशन कर प्रतापी शंखमुनि ने अपराजित विमान प्राप्त किया । यथा विधि जप तप करने के बाद यशोमती आदि भी उसी विमान के अधिकारी हुए । ܀܀܀
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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