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श्री नेमिनाथ-चरित * 49
आये थे। इसके बाद वे मणिशेखर के साथ वैताढय पर्वत पर गये और वहां पर सिद्धायतन की यात्रा की। यशोमती और उसकी दाई ने भी इस यात्रा में शंखकुमार का साथ दिया। ___ सिद्धायतन की यात्रा करने के बाद मणिशेखर, शंखकुमार और यशोमती आदि को कनकपुर ले गया और वहां उसने बड़े प्रेम से उनका स्वागत सत्कार किया। शंखकुमार के वीरत्व और सद्गुणों पर मुग्ध हो वहाँ के अन्यान्य विद्याधरों ने उनकी दासता स्वीकार की और उनसे अपनी कन्याओं का विवाह करने की भी प्रार्थना की, परन्तु शंखकुमार ने कहा कि यशोमती के साथ विवाह करने के बाद ही मैं इन कन्याओं से विवाह कर सकता हूँ, उसके पहले शंखकुमार ने मणिशेखर के यहां रहकर बहुत दिनों तक उसका आतिथ्य ग्रहण किया। इसके बाद जब उन्होंने वहाँ से प्रस्थान करने की इच्छा प्रकट की, तब मणिशेखर आदि अनेक विद्याधर अपनी अपनी कन्याओं को साथ लेकर उन्हें चम्पानगरी तक पहुँचाने आये। ___ चम्पानगरी में जब राजा जितारी ने यह सब हाल सुना, तो वे आनन्द से फूल उठे। उन्हें स्वप्न में भी अब आशा न थी कि वे अपनी प्राणाधिक पुत्री को पुनः देख सकेंगे। वे अपने मुख्य राजकर्मचारियों को साथ ले, नगर के बाहर पहुँचे और बड़ी धूम के साथ शंखकुमार तथा यशोमती आदि को नगर में ले आये। शीघ्र ही शुभमुहूर्त में उन्होंने आनन्द पूर्वक उन दोनों का विवाह कर दिया। इसके बाद अन्यान्य विद्याधरों की कन्याओं से भी शंखकुमार ने विवाह किया। विवाहोत्सव पूर्ण होने पर श्रीवासुपूज्य भगवान के चैत्य की भक्तिपूर्वक यात्रा कर शंखकुमार हस्तिनापुर लौट आये। - इधर आरण देवलोक से च्युत होकर पूर्व जन्म के सूर और सोम नामक दोनों भाई इस जन्म में भी शंखकुमार के यशोधर और गुणधर नामक दो लघु बन्धु हुए। कुछ दिनों के बाद राजा श्रीषेण ने शंखकुमार को अपने राजसिंहासन पर बैठाकर, गुणधर नामक गणधर के पास जाकर दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने बहुत दिनों तक उग्र तपस्या की। अन्त में जब उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ, तब एक दिन देवताओं के साथ विहार करते हुए वे हस्तिनापुर आ पहुँचे। वनपाल के मुख से केवली भगवान का आगमन सुनकर शंख राजा ने उनकी