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श्री नेमिनाथ-चरित * 47 पास भेज दिया। परन्तु वहां से कोई उत्तर आने के पहले ही मणिशेखर नामक एक विद्याधर राजा ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट कर उसकी मंगनी
___इधर राजा जितारि चिन्ता में पड़ गये क्योंकि यशोमती ने स्पष्ट कह दिया कि वह शंखकुमार के सिवा और किसी से ब्याह करना नहीं चाहती। यह सुनकर वह विद्याधर असन्तुष्ट हो गया और उसने उसका हरण कर लिया। मैं उसकी दाई थी। मुझे उसने बड़ा स्नेह था, इसलिए मैं भी उसके साथ आयी थी, परन्तु दुष्ट विद्याधर मुझे यहीं छोड़कर उसे न जाने कहां उठा ले गया है। भे भद्र! मैं उसी के वियोग से दुःखित होकर यहाँ पर विलाप कर रही हूँ।"
यह सब समाचार सुनकर शंखकुमार ने कहा-“हे माता! तुम धैर्य धारण करो। मैं उस विद्याधर को पराजित कर कुमारी को शीघ्र ही तुम्हारे पास ले आता हूँ।" - इतना कह शंखकुमार वहां से चल पड़े और जंगल में चारों और घूम घूम कर उस विद्याधर की खोज करने लगे। खोजते खोजते सवेरा हो गया और सूरज निकल आया, किन्तु कही.उसका पता न चला। अन्त में वे विशाल श्रृंग पर्वत
पर जा पहुंचे। वहां पर एक गुफा में उन्होंने उस विद्याधर को देखा। उस समय • वह यशोमति को व्याह करने के लिये मना रहा था। और यशोमती दृढ़ता पूर्वक
इन्कार कर रही थी। वह उस विद्याधर से कह रही थी कि तुम्हारी यह याचना बिल्कुल व्यर्थ है। मैं अपना तन मन शंखकुमार को अर्पण कर चुकी हूँ। अब उनके सिवा और कोई पुरुष मेरे शरीर को हाथ नहीं लगा सकता।" : उसके यह वचन सुनकर, विद्याधर ने असन्तुष्ट होकर कहा-“तुम जिस
शंखकुमार को इतना प्रेम करती हो, उसको तो मैंने अपने अधिकार में कर रक्खा है। अब तुम उसे देख भी न सकोगी। तुम्हें आज नहीं तो कल, मेरे साथ अवश्य ही ब्याह करना होगा। यदि तुम मेरी बात प्रसन्नता पूर्वक न मानोगी, तो मुझे लाचार होकर बलात्कार करना पड़ेगा।"
इधर शंखकुमार एक और खड़े खड़े सब बातें सुन रहे थे, जब उन्होंने उसकी यह धमकी सुनी तो वे गरज कर कहने लगे—“हे नीच! हे पापी! अब तू तैयार हो जा! मैं तुझे कदापि जीता न छोडूंगा।"