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श्री नेमिनाथ-चरित * 45 वे दोनों एक दूसरे के घनिष्ट मित्र बने रहे। . एक दिन प्रजा के एक दल ने श्रीषेण राजा की सेवा में उपस्थित होकर प्रार्थना की कि:- "हे राजन् ! आपके राज्य की सीमा पर विशाल श्रृंग नामक एक बहुत ही विषम पर्वत है। उस में शिशिरा नामक एक नदी भी बहती है। उसी पर्वत के कीले में समरकेतु नामक एक पल्लीपति रहता है। वह हम लोगों पर बड़ा ही अत्याचार करता है और हम लोगों को दिन दहाड़े लूट लेता है। हे राजन् ! यदि आप उसके अत्याचार से हमारी रक्षा न करेंगे, तो हम लोग आप का राज्य छोड़कर कही अन्यत्र जा बसेंगे।"
प्रजा के यह वचन सुनकर राजा ने उन्हें आश्वासन दे विदा किया और पल्लीपति पर आक्रमण करने के लिए उसी समय सैन्य को तैयार होने की आज्ञा दी। रणभेरी की आवाज सुनकर नगर में खल बली मच गयी। शंखकुमार उसका कारण जानकर पिता के पास दौड़ा आया और उन्हें प्रणाम कर कहने लगा"हे पिताजी! एक साधारण पल्लीपति पर आप इतना क्रोध क्यों करते हैं ? श्रृगाल पर सिंह को हाथ डालने की जरूरत नहीं। उसके लिए तो हम लोग काफी हैं। यदि आप की आज्ञा हो तो मैं शीघ्र ही उसे गिरफ्तार कर आप की सेवा में हाजिर कर सकता हूँ। . • पुत्र के यह वचन सुनकर राजा को बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने पल्लीपति को दण्ड देने के लिए शंखकुमार की अधिनायकता में एक बड़ी सेना • रवाना की। परन्तु पल्लीपति बड़ा ही धूर्त था। उसने ज्यों ही सुना कि शंखकुमार
इस और आ रहे हैं, त्यों ही वह अपने किले को खाली कर एक गुफा में जा - छिपा। कुशाग्रबुद्धि शंखकुमार उसकी यह चाल पहले ही समझ गया, इसलिए
उन्होंने कुछ सेना के साथ एक सामन्त को उस किले में भेज दिया और वे स्वयं एक गुफा में छिपे रहे। पल्लीपति ने समझा कि शंखकुमार समस्त सेना के साथ दुर्ग में चले गये हैं, इसलिये अब उन्हें घेर लेना चाहिए। यह सोचकर उसने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया। शंखकुमार ने यही समय उपयुक्त समझ कर बाहर से उस पर आक्रमण कर दिया। अब उस पर दोनों और से मार पड़ने लगी। एक
और से उस पर दुर्ग की सेना टूट पड़ी और दूसरी ओर से शंखकुमार की सेना ने धावा बोल दिया। दोनों सेनाओं के बीच में वह बुरी तरह फँस गया। जब उसने