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श्री नेमिनाथ-चरित * 43 दिन वे जब फिर नगर घूमने निकले तो उन्होंने देखा कि नगर के किसी प्रतिष्ठित पुरुष की मृत्यु हो गयी है और उसके शव को हजारों आदमी श्मशान लिये जा रहे हैं। शव के पीछे कई स्त्रियाँ बाल बिखेरे हृदयभेदक ध्वनि से करुण क्रन्दन कर रही थीं। राजा ने सेवक से पूछा- “यह कौन है ? किस की मृत्यु हो गयी है?" सेवक ने बतलाया-“महाराज! यह वही अनंगदेव सार्थवाह है, जिसे कल आपने बगीचे में देखा था। आज विशूचिका-हैजे की बीमारी से इसकी मृत्यु हो गयी है।"
यह सुनकर राजा को बड़ा ही दुःख हुआ। साथ ही मनुष्य जीवन की यह क्षणभंगुरता देखकर उनका हृदय वैराग्य से भर गया। वे खिन्नता पूर्वक अपने वासस्थान को लौट आये और यथा नियम अपने राजकाज देखने लगे, परन्तु इस दिन से किसी भी काम में उनका जी न लग सका। उनकी आन्तरिक शान्ति नष्ट हो गयी और उसका स्थान सदा के लिए अशान्ति ने अधिकृत कर लिया। ... पाठकों को स्मरण होगा, कि देशाटन के समय कुण्डपुर में अपराजित को एक केवली के दर्शन हुए थे। कुछ दिनों के बाद वही केवली भगवान एक दिन सिंहपुर आ पहुँचे। राजा अपराजित ने बड़ी श्रद्धा के साथ उनकी सेवा में • उपस्थित हो उनका धर्मोपदेश सुना। इसके बाद उन्होंने प्रीतिमती के उदर से उत्पन्न पद्म नामक अपने पुत्र को राज्यभार सौंप, उन्हीं के निकट दीक्षा ले ली। रानी प्रीतिमती, लघुबन्धु सूर और सोम तथा मन्त्री विमल-बोध ने भी उनका अनुसरण कर उसी समय दीक्षा ले ली। इन सब लोगों ने अपने जीवन का शेष समय तपस्या करने में बिताया, मृत्यु होने पर आरण देवलोक में इन्हें इन्द्र के • समान देवत्व प्राप्त हुआ और वे सब परस्पर प्रेम करते हुए स्वर्गीय सुखों का " उपभोग करने लगे।