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40 * पांचवां और छठा भव तरह छिन्न-भिन्न कर डाला कि उसमें बेतरह भगदड़ मच गयी। ___परन्तु भूचर और खेचर राजाओं के लिए यह बड़ी लज्जा की बात थी। एक तो राजकन्या द्वारा वे वाद-विवाद में पराजित हुए थे, दूसरे अब राजकुमार अपराजित, जिसे वे कोई साधारण व्यक्ति समझ रहे थे, अकेला ही उनका मान-भंग कर रहा था। वे अपनी इस पराजय से झल्ला उठे और बिखरी हुई सेना को एकत्र कर फिर से युद्ध करने लगे। इस बार राजकुमार ने राजा सोमप्रभ का हाथी छीन लिया और उस पर बैठकर वे शत्रु सेना का संहार करने लगे। ..
इस युद्ध में भी वे न जाने कितने सैनिकों का काम तमाम कर डालते, परन्तु सौभाग्य वश उनके कितने ही लक्षण और तिलक आदि देखकर राजा सोमप्रभ ने उनको पहचान लिया। उन्होंने राजकुमार को प्रेमपूर्वक गले लगाकर कहा-“हे कुमार! मैंने तुम्हें पहचान लिया। तुम तो मेरे भानजे हो!" .
राजा सोमप्रभ के मुख से राजकुमार अपराजित का परिचय पाकर सब राजाओं ने युद्ध करना बन्द कर दिया। अब तक जो शत्रु बनकर युद्ध कर रहे थे, वे ही अब मित्र बनकर अपराजित के विवाह में,योगदान करने लगे। राजा जितशत्रु ने शुभमुहूर्त में बड़ी धूमधाम से राजकुमार अपराजित के साथ प्रीतिमती का विवाह कर दिया। विवाह के समय राजकुमार अपना प्रकृत रूप प्रकट किया, जिसे देखकर राजा जितशत्रु तथा राजकन्या प्रीतिमती विशेष रूप से आनन्दित हुए।
विवाह कार्य सानन्द सम्पन्न हो जाने पर राजा जितशत्रु ने समस्त राजाओं को सम्मानपूर्वक विदा किया। राजकुमार अपराजित अपने मित्र विमलबोध के साथ कुछ दिनों के लिए वहीं ठहर गये और अपनी नव-विवाहिता पत्नी के साथ आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगे। राजा जितशत्रु के मन्त्री की एक कन्या थी, जिसकी अवस्था विवाह करने योग्य हो चुकी थी। इस बीच में उसने उसका ब्याह विमलबोध के साथ कर दिया जिससे उसके जीवन में भी आनन्द की बात आ गयी। दोनों मित्र दीर्घकाल तक अपने श्वसुर का आतिथ्य ग्रहण करते रहे।
राजकुमार अपराजित की इस विजय और विवाह का समाचार धीरे-धीरे राजा हरिनन्दी के कानों तक जा पहुंचा। उन्होंने राजकुमार का पता पाते ही