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श्री नेमिनाथ - चरित
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कर दिया जायगा । मुझे विश्वास है कि इस घोषणा से कभी-न-कभी कोई उपयुक्त वर मिल ही जायगा, साथ ही वर्तमान अवस्था में जो हँसी होने का डर है, वह भी इससे न रहेगा । "
मन्त्री की यह सलाह राजा को पसन्द आ गयी, इसलिए उन्होंने तुरन्त उपरोक्त प्रकार की घोषणा करा दी। यह घोषणा सुनकर राजकुमार अपराजित अपने मन में कहने लगे - " यद्यपि वाद-विवाद में स्त्री को जीतने पर भी पुरुष का गौरव नहीं बढ़ सकता, तथापि मैं उसे जीतने की चेष्टा अवश्य करूँगा । उसके प्रश्नों का उत्तर न दे सकना पुरुषों के लिए लज्जा की बात है। इसमें उनका अपमान है, उनकी हीनता है। मैं यह कलंक अवश्य दूर करूँगा । "
यह सोचकर अपराजित तुरन्त प्रीतिमती के सामने आ खड़े हुए। इस समय उन्होंने बहुत ही साधारण कपड़े पहन रखे थे, साथ ही अपना रूप भी विकृत बना लिया था, इसलिए देखने में वे उतने सुन्दर न मालूम होते थे, फिर भी पूर्वजन्म के स्नेहानुभाव के कारण प्रीतिमती उन्हें देखते ही उन पर अनुरक्त हो गयी। इसके बाद यथाविधि वाद- -विवाद आरम्भ हुआ। प्रीतिमती ने पूर्वपक्ष लिया, परन्तु अपराजित इससे विचलित न हुए । उन्होंने उसके प्रश्नों का उत्तर देते हुए इतनी सुन्दरता से उसकी युक्तियों का खण्डन किया कि वह अवाक् बन गयी। उसने उसी क्षण अपनी पराजय स्वीकार कर राजकुमार के गले में जयमाला पहना दी।
परन्तु राजकुमार की यह विजय देखकर समस्त भूचर और खेचर राजा ईर्ष्याग्नि से जल उठे। वे कहने लगे - " क्या हमारे रहते हुए यह दरिद्री इस · राजकन्या को ले जायगा ? हम यह कदापि न होने देंगे। इतना कहकर वे सब शस्त्रास्त्र से सज्जित हो राजकुमार पर आक्रमण करने लगे। उनकी सेना भी इधरउधर दौड़धूप करने लगी। राजकुमार इस युद्ध के लिये तैयार न थे, किन्तु ज्यों ही राजाओं ने रंग बदला, त्यों ही वे एक हाथी के सवार को मारकर उस पर चढ़ बैठे और उसके हौदे में जो शस्त्रास्त्र रखे थे, उन्हीं को लेकर वे युद्ध करने लगे। इस प्रकार कभी रथ पर कभी हाथी पर और कभी जमीन पर रहकर युद्ध करने से वे एक होने पर भी ऐसे मालूम होने लगे मानो कई राजकुमार युद्ध कर रहे हैं। उन्होंने अपने विचित्र रण - कौशल से थोड़ी ही देर में शत्रु सेना को इस