________________
38 * पांचवां और छठा भव आदिक नरेश भी आये हुए हैं। यह विद्याधरों के स्वामी राजा मणिचूड़ हैं। यह रत्न के समान कान्तिवाले राजा रत्नचूड़ हैं। यह दीर्घबाहु मणिप्रभ राजा हैं और यह सुमन, सूर, सौम आदिक खेचर राजा हैं। हे सखी! इन सब कलाविदों को देखकर भलीभाँति इनकी परीक्षा कर लो, फिर जिसे पसन्द करो उसे अपनी वरमाला अर्पण करो।
इस प्रकार सखी ने प्रीतिमती को सभामण्डप के समस्त राजाओं का परिचय दिया। उस समय प्रीतिमती जिस राजा की ओर देखती वही कामदेव के बाण से घायल हो छटपटाने लगा। अन्त में उसने सरस्वती की भाँति वीणाविनिन्दित कण्ठस्वर से पूर्व पक्ष ग्रहण कर वाद-विवाद करना आरम्भ किया। उसे सुनकर समस्त भूचर और खेचर राजा हतबुद्धि हो गये। किसी में भी ऐसी शक्ति न थी, जो उसके प्रश्नों का उत्तर दे सके। सब लोगों ने निराश हो, मन ही मन पराजय स्वीकार कर, अपना सिर झुका लिया। __सभा की यह अवस्था देखकर राजा जितशत्रु बड़ी चिन्ता में पड़ गये। वे अपने मन में कहने लगे-“हा दैव! अब मैं क्या करूँ ? सभा में एक से एक विद्वान राजा महाराजा उपस्थित हैं, परन्तु इनमें से कोई भी प्रीतिमती के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता। मानों सभी के मुँह में ताला लग गया है। यदि मैं जानता कि यह अवस्था होगी, तो इस स्वयंवर का आयोजन ही न करता। इसकी अपेक्षा तो किसी के साथ राजकन्या का चुपचाप विवाह कर देना ही अच्छा था। इतना सब करने के बाद अब वह भी नहीं हो सकता। क्या अब प्रीतिमती कुमारी ही रह जायगी? क्या विधाता ने उसके लिये पति की सृष्टि ही नहीं की?"
राजा को इस प्रकार चिन्तित देखकर प्रधानमन्त्री ने उसे धैर्य देते हुए कहा-“हे राजन् ! आप इतनी चिन्ता क्यों कर रहे हैं? बहुरत्ना वसुन्धरा ने प्रीतिमती के लिए पति की सृष्टि जरूर की है। वह समय आने पर अवश्य प्राप्त होगा। राजा ने प्रत्युत्तर में कहा, “हे मंत्री! यदि आज प्रीतिमती के लिये उपयुक्त वर नहीं मिलता, तो हमें यह न मान लेना चाहिए कि फिर कभी नहीं मिलेगा। हे राजन् ! अब आप यह घोषणा कर दीजिए कि कोई भी राजकुमार या साधारण पुरुष जो प्रीतिमती को वाद-विवाद में जीत लेगा, उसी के साथ उसका ब्याह