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श्री नेमिनाथ-चरित * 37 ... राजा जितशत्रु ने यथासमय प्रीतिमती के स्वयंवर की तैयारी की। नगर में बड़ी सजावट के साथ एक मण्डप बनाया गया और उसमें भिन्न-भिन्न राजाओं के लिए सुशोभित मंच और आसन सजाये गये। महाराज का निमन्त्रण पाकर दूर-दूर के राजे-महाराजे अपने-अपने राजकुमारों के साथ स्वयंवर में भाग लेने के लिए आकर उपस्थित हुए। केवल राजा हरिनन्दी न आये, क्योंकि वे पुत्रवियोग के कारण सदैव दुखि:त रहते थे। |
राजकुमार अपराजित को इस स्वयंवर का कोई हाल मालूम न था, किन्तु दैवयोग से घूमते घामते वे भी अपने मित्र के साथ वहाँ आ पहुँचे। स्वयंवर की चहल-पहल देखकर उन्होंने अपने मित्र विमलबोध से कहा-“हे मित्र! हम लोग बहुत अच्छे समय पर यहाँ आ पहुंचे हैं। यदि हम लोग यहाँ ठहर जायेंगे, तो देश-देशान्तर के राजकुमारों का कौशल देखने के अलावा हम लोग उस राजकुमारी को भी देख सकेंगे, जो कला से इतना प्रेम रखती है।" . मन्त्री-पुत्र ने भी राजकुमार के प्रस्ताव का अनुमोदन किया, इसलिए वे दोनों वहीं ठहर गये। पाठकों को मालूम ही है कि सूरकान्त ने मन्त्री-पुत्र को वेश-परिवर्तन की एक गुटिका भेंट दी थी। स्वयंवर के दिन अपराजित ने उसके सहारे अपना वेश बदल डाला, जिससे उन्हें कोई पहचान न सके। इसके बाद वे दोनों दर्शकों के मंच पर एक स्थान में जा बैठे। उनके विकृत रूप के कारण किसी का ध्यान उनकी ओर आकर्षित न हुआ। - यथासमय राजकुमारी प्रीतिमती ने स्वयंवर वाले मण्डप में प्रवेश किया। उसने दिव्य वस्त्रालंकार धारण किये थे। वह सखियों के झुण्ड से घिरी हुई थी, किन्तु उसके दोनों ओर चमर ढाल रहे थे, जिससे वह आसानी से पहचानी जा सकती थी। राजाओं के सामने पहुँचने पर उसकी प्रधान परिचारिका भिन्न-भिन्न राजाओं को दिखा कर उनका परिचय प्रदान करने लगी। उसने कहा-“देखो सखी! यहाँ पर अनेक गुणवान, रूपवान और कलाकुशल राजकुमार तथा राजे महाराजे एकत्र हुए हैं। यह देखिए, कदम्ब देश के राजा भुवनचन्द्र हैं, जो पूर्व दिशा के भूषण रूप हैं। यह दक्षिण दिशा के अलंकार रूप समरकेतु राजा हैं। उत्तर दिशा के कुबेर समान यह कुबेरराज हैं। जिनकी कीर्तिलता दूर-दूर तक फैली है, ऐसे यह सोमप्रभ राजा है। इनके अतिरिक्त धवन, शुर और भी