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________________ 422 बलराम की दीक्षा और नेमिप्रभु का मोक्ष बलराम के भक्तों की संख्या दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती गयी । बलराम कृष्ण की इच्छानुसार भरतक्षेत्र में इस प्रकार कृष्ण पूजा का प्रचार कर, उनके वियोग से दु:खित होते हुए अपने वासस्थान ( देवलोक ) को लौट आये। ' उधर जराकुमार ने पाण्डवों के पास पहुँचकर उनको कौस्तुभ रत्न दे, द्वारिका दहन का समाचार सुनाया । यह शोक संवाद सुनकर पाण्डव अत्यन्त दुःखित हुए और एक वर्ष तक रुदन करते हुए उन्होंने विशेष रूप से कृष्ण की उत्तर क्रिया की । इसके बाद उनको दीक्षाभिलाषी जानकर नेमि प्रभु ने पांच सौ. मुनियों के साथ महाज्ञानी धर्मघोष मुनि को उनके पास भेजा । पाण्डवों ने जराकुमार को अपने सिंहासन पर बैठाकर, द्रौपदी आदिक रानियों के साथ तुरन्त उनके निकट दीक्षा लेने के बाद वे सब अभिग्रह सहित कठिन तप करने लगे। भीम ने एक बहुत ही कठिन अभिग्रह लिया, जो छः मास में पूरा हुआ। उन्होंने क्रमश: द्वादशाङ्गी का भी अभ्यास किया। कुछ दिनों के बाद उन्हें नेमिभगवान को वन्दन करने की इच्छा उत्पन्न हुई, इसलिए वे पृथ्वी पर विचरण करते हुए, नेमिभगवान के प्रवास स्थान की ओर विहार कर गये । उस समय नेमिभगवान मध्य देशादि में विहार कर उत्तर दिशा में राज गृहादिक नगरों में विचरण कर रहे थे। वहां से हीमान पर्वत पर जा, अनेक म्लेच्छ देशों में विचरण कर भगवान ने वहां के अनेक राजा तथा मन्त्री आदि को धर्मोपदेश दिया। इस प्रकार आर्य अनार्य देश का भ्रमण समाप्त कर वे फिर मान पर्वत पर लौट आये। वहां से वे किरात देश में गये। इसके बाद हीमान पर्वत से उतरकर उन्होंने दक्षिण देश में विचरण किया। इस प्रकार केवलज्ञान की उत्पत्ति से लेकर इस समय तक उनके धर्मोपदेश से अठारह हजार साधु, चालीस हजार साध्वियां, 414 पूर्वधारी, 1500 अवधिज्ञानी, 1500 केवलज्ञानी, 1000 मनः पर्यवज्ञानी, 800 वादीलाख 68 हजार श्रावक तथा 3 लाख 49 हजार श्राविकाएं हुई । इस प्रकार चतुर्विध संघ के परिवार से घिरे हुए और सुर, असुर तथा राजाओं से युक्त भगवान् अपना निर्वाण समय समीप जानकर गिरनार पर्वत पर गये। वहां इन्द्रों के रचे हुए समवसरण में विराजकर भगवान संसारं पर दया कर अन्तिम धर्मोपदेश देने लगे । धर्मोपदेश सुनकर अनेक लोगों ने उसी समय
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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