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34 : पांचवां और छठा भव
राजकुमार तुम्हारे वियोग से व्याकुल हो रहे थे, इसलिए उन्होंने उनकी प्रार्थना का कोई उत्तर न दिया। वे बार- बार तुम्हारा स्मरण करते थे, इसलिए हमारे स्वामी ने तुम्हें भी लेकर आने की आज्ञा दी है। बड़ी खोज के बाद हमें तुम्हारा पता लगा है। हे महाभाग ! अब आप उठिए और जल्दी हमारे साथ चलिए। आप के बिना राजकुमार का ब्याह रुक गया है । "
विद्याधरों के यह वचन सुनकर मन्त्री -पुत्र के आनन्द का वारापार न रहा। वह शीघ्र ही उन दोनों के साथ चल पड़ा और राजा भुवनभानु के यहाँ अपराजित से जा मिला। उसे देखकर राजकुमार का सारा दुःख दूर हो गया और उसने सहर्ष भुवनभानु की दोनों कन्याओं का पाणिग्रहण कर लिया । राजा भुवनभानु ने अपने इन दोनों अतिथियों को कई दिन अपने यहाँ रखकर उनका भली-भांति आतिथ्य किया। इसके बाद राजकुमार अपने मित्र के साथ उनसे विदा ग्रहण कर वहाँ से चल पड़े । मार्ग में उन्हें श्रीमन्दिर नामक एक मनोहर नगर मिला। उसकी रमणीयता देखकर उन दोनों ने कुछ दिनों तक वहाँ रह जाने का विचार किया। सूरकान्त के दिए हुए मणि द्वारा सभी आवश्यक पदार्थ प्राप्त कर वे दोनों वहाँ रहने लगे।
एक दिन राजकुमार ने देखा कि उस नगर में भयंकर हाहाकार मचा हुआ है। नगर के अधिकारीगण जनता को शान्त करने की चेष्टा कर रहे हैं, उसे समझा बुझा रहे हैं, किन्तु कोई उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता । जिसे जिधर जगह मिलती है, वह उधर ही भाग रहा है। जनता की यह अवस्था देखकर राजकुमार ने अपने मित्र को वास्तविक घटना का समाचार लाने के लिये बाजार में भेजा। उसने वापस आकर राजकुमार से कहा - " हे मित्र ! इस नगरी के राजा सुप्रभ है। उसे किसी ने छुरी मार दी है। लोग कहते हैं कि उसके बचने की कोई आशा नहीं । उस राजा का कोई उत्तराधिकारी ऐसा नहीं है, जो राज्य का समुचित प्रबन्ध करे । प्रायः ऐसे मौकों पर राज्य के शत्रु नगर पर आक्रमण कर दिया करते हैं । इसीलिए नगर निवासी इधर-उधर भाग रहे हैं !” यह समाचार सुनकर राजकुमार को बहुत ही आश्चर्य और दुःख हुआ ।
उधर इसी नगर में कामलता नामक एक प्रसिद्ध गणिका - रहती थी । उसके पास संरोहण औषधि थी । उसके द्वारा वह अनेक आहत व्यक्तियों को आराम