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श्री नेमिनाथ - चरित 33
तब
एक बहुत बड़ा जंगल मिला। उसमें कुछ दूर जाने पर राजकुमार को प्यास मालूम हुई, इसलिए राजकुमार को एक आम्र वृक्ष के नीचे बिठाकर मन्त्री -पुत्र जल लेने चला गया। परन्तु थोड़ी देर में जब वह जल लेकर वापस आया, उसने देखा कि राजकुमार का कहीं पता नहीं है। वह अपने मन में यह सोचकर कि शायद मैं भूलकर किसी दूसरे वृक्ष के नीचे चला आया हूँ, अत: वह इधरउधर के अन्य वृक्षों के नीचे उन्हें खोजने लगा, पर कहीं भी राजकुमार का पता न चला। अन्त में वह निराश होकर एक स्थान में बैठ गया। मानसिक व्याकुलता के कारण उसे मूर्छा आ गयी । वायु के शीतल झकोरों के कारण कुछ देर में होश आने पर मन्त्री -पुत्र पुन: राजकुमार के वियोग से व्याकुल हो उठा। वह दोनों नेत्रों से अश्रुधारा बहते हुए कहने लगा- ' - " हे कुमार ! तुम कहाँ हो ? क्या इस प्रकार अदृश्य होकर तुम मेरी परीक्षा ले रहे हो ? हे मित्र ! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम जहाँ भी रहोगे, सुखी रहोगे । संसार में कोई भी मनुष्य तुम्हारा अपकार नहीं कर सकता, किन्तु तुम्हारे वियोग से मेरा हृदय विदीर्ण हो रहा है। हाँ ! राजकुमार ! तुम कहाँ हो ?”
इस प्रकार मन्त्री- पुत्र बहुत देर तक विलाप करता रहा, परन्तु इसका कोई फल न हुआ। वह पुनः उठ खड़ा हुआ और चारों ओर उसकी खोज करता हुआ नन्दीपुर नामक एक नगर के समीप पहुँचा । वह चलते-चलते थक गया था, इसलिए नगर के बाहर एक बगीचे में बैठकर विश्राम करने लगा। इसी समय दो विद्याधरों ने उसके पास आकर कहा - "हे मन्त्री पुत्र ! भुवनभानु नामक एक विद्याधर राजा समीप के जंगल में अपनी विद्या के बल से एक महल खड़ा कर उसी में सपरिवार रहता है। उसे कमलिनी और कुमुदिनी नामक दो कन्याएँ हैं । • भुवनभानु को एक ज्योतिषज्ञ ज्ञानी ने बतलाया कि उनका विवाह आपके मित्र अपराजित के साथ होगा। उसका यह वचन सुनकर उन्होंने हमें उसे ले आने की आज्ञा दी। शीघ्र ही हम लोग उसकी खोज में निकल पड़े। जंगल में पहुँचते ही तुम दोनों पर हमारी दृष्टि पड़ी। इसके बाद जिस समय तुम जल लेने गये, उस समय मौका देखकर हम लोग उसे अपने स्वामी के पास उठा ले गये । हमारे स्वामी उसे देखते ही उठकर खड़े हो गये और अत्यन्त सम्मानपूर्वक उन्होंने उसे अपने आसन पर बैठाया। इसके बाद उन्होंने नाना प्रकार से राजकुमार की स्तुति कर उससे अपनी दोनों कन्याओं का पाणि ग्रहण करने की प्रार्थना की परन्तु