SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32 * पांचवां और छठा भव नरक में जाने से बचाया। सच पूछिये तो आपने हम दोनों पर बड़ा ही उपकार किया है। हे महाभाग! यही मेरा और इस सुन्दरी का परिचय है। यदि आपत्ति न हो तो आप भी अब अपना परिचय देने की कृपा करें।" ___ विद्याधर की यह प्रार्थना सुनकर राजकुमार ने एक मतलब भरी दृष्टि से मन्त्री-पुत्र की ओर देखा। मन्त्री-पुत्र ने उनका तात्पर्य समझ कर विद्याधर को उनके नाम और कुलादिक का परिचय दिया। राजकुमार का प्रकृत परिचय पाकर रत्नमाला भी आनन्द से पुलकित हो उठी। उसे ऐसा मालूम होने लगा मानो परमात्मा ने ही उस पर दया कर उसके इष्ट को यहाँ भेज दिया है। वह इसके लिए उसे अनेकानेक धन्यवाद देने लगी। इसी समय रत्नमाला को खोजते हुए उसकी माता कीर्तिमती और उसके पिता अमृतसेन भी वहाँ आ पहुँचे। उनके पूछने पर मन्त्री-पुत्र ने उन्हें सारा हाल कह सुनाया। उन्हें जब यह मालूम हुआ कि रत्नमाला के भावी पति ने ही संयोगवश वहाँ पहुँच कर उसकी रक्षा की है, तब उनके आनन्द का वारापार न रहा। उन्होंने उसी समय अपराजित के साथ रत्नमाला का ब्याह कर दिया। सूरकान्त पर राजा अमृतसेन को बड़ा ही क्रोध आया, परन्तु अपराजित के कहने से उन्होंने उसका अपराध क्षमा कर दिया। इसके बाद राजा अमृतसेन ने अपराजित से अपने नगर चलने की प्रार्थना की, किन्तु अपराजित ने इस बात को अस्वीकार करते हुए कहा-“इस समय आप मुझे क्षमा करिए। अपने नगर पहुँचने पर मैं आपको सूचना दूंगा, तब आप रत्नमाला को मेरे पास पहुंचा दीजिएगा। भविष्य में यदि कभी इस तरफ आऊँगा, तो आपका आतिथ्य अवश्य ग्रहण करूँगा।" इतना कह राजकुमार ने राजा अमृतसेन, रत्नमाला और उसकी माता से विदा ग्रहण की, विद्याधर सूरकान्त ने भी उसे प्रेमपूर्वक विदा किया। उसने चलते समय अपराजित को पूर्वोक्त मणि और जड़ी-बूटी तथा मन्त्री-पुत्र को वेश बदलने की गुटिका अपनी ओर से भेंट दी। राजकुमार और मन्त्री-पुत्र ने उसकी यह भेंट सहर्ष स्वीकार कर ली। उसके बाद सब लोगों ने एक दूसरे से विदा हो अपने-अपने स्थान के लिए प्रस्थान किया। .. राजकुमार अपराजित और मन्त्री-पुत्र को इस स्थान से आगे बढ़ने पर
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy