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________________ 414 इक्कीसवाँ परिच्छेद बलराम की दीक्षा और नेमिप्रभु का मोक्ष कृष्ण की मृत्यु के बाद कुछ देर में बलराम कमलपत्र के दोने में जल लेकर कृष्ण के पास आये। पहले तो वे यह समझकर चुपचाप बैठे रहे, कि कृष्ण को नींद आ गयी है और उसमें बाधा न डालना चाहिए, परन्तु बाद में जब उन्होंने उनके मुख पर मक्खियों को देखा, तब उन्हें कुछ सन्देह हुआ। इस पर उन्होंने वस्त्र हटाकर देखा तो कृष्ण के पैर में ताजा, जखम दिखायी दिया। अब उन्हें समझ पड़ गयी, कि इसी चोट के कारण उनको मूर्च्छा आयी है। कृष्ण की यह अवस्था देखते ही वे कटे हुए वृक्ष की भांति मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। कुछ देर बाद जब बलराम की मूर्च्छा दूर हुई, तब उन्होंने महाभीषण सिंहनाद किया। उस नाद से समूचा वन प्रतिध्वनित हो उठा और वहां के पशु पक्षी तक कांप उठे । बलराम ने गंभीर स्वर में कहा-' -" यहां बलराम के सोते हुए मेरे लघु बन्धु को जिस पापी ने बाण मारा हो, वह अपने को प्रकट कर दे। यदि वीर हो तो मेरे सामने आये । निद्राधीन, प्रमत्त, बालक, मुनि और स्त्री को बाण मारना महापाप है, कायरता है, नीचता है। बलराम ने इस तरह की बातें कहते हुए वन में चारों ओर भ्रमण किया, किन्तु जब कोई कहीं दिखायी न दिया, तब वे कृष्ण के पास लौट आये और उनको आलिङ्गन कर अत्यन्त करुण स्वर से विलाप करने लगे। वे कहने लगे — “ हा भ्राता ! हा पुरुषोत्तम ! हां मेरे हृदय कमल के सूर्य ! तुम मुझे अकेला छोड़कर कहां चले गये! हे कृष्ण ! तुम तो कहते थे कि तुम्हारे बिना मैं
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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