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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 413 विडम्बना भोग़नी थी, इसलिए मैं ही इस लाभ से वञ्चित रह गया। धिक्कार है, मेरे इस निरर्थक जीवन को।” ____ इस प्रकार के विचार करते करते कृष्ण के अंग प्रत्यङ्ग में असह्य वेदना होने लगी और वायु का प्रकोप भी बेतरह बढ़ गया। अन्त में तृषा, शोक, वायु और वेदना के कारण वे विवेक भ्रष्ट हो गये और अपने मन में कहने लगे कि-"अब तक किसी भी देवता या मनुष्य ने मुझे नीचा न दिखाया था, किन्तु द्वैपायन ने मुझे नीचा दिखा दिया। वह दुष्ट यदि इस समय भी मेरे सामने आ जाय, तो मैं उसके प्राण लिये बिना न छोड़े। वह मेरे सामने किस हिसाब में हैं। यदि मैं उसके पीछे पड़ जाऊं तो मेरे हाथों से उसकी कोई भी रक्षा नहीं कर सकता।" ___ इस प्रकार क्षणभर के लिए रौद्र ध्यान को प्राप्त हो, परम प्रतापी कृष्ण ने अपना प्राण त्याग दिया। मृत्यु के बाद निकाचित कर्म योग से वे पूर्वोपार्जित तीसरी नरक पृथ्वी के अधिकारी हुए। कृष्ण की आयु पूरे एक हजार वर्ष की थी। इसमें से सोलह वर्ष कुमारावस्था में, छप्पन वर्ष मंडलीकं पद पर, आठ वर्ष दिग्विजय में और 920.वर्ष उन्होंने वासुदेव के पद पर व्यतीत किये। जिनेन्द्र के कथनानुसार, इसी भरतक्षेत्र में, आगत चौबीसी में वे अमम नामक तीर्थकर होंगे धन्य है ऐसे प्रतापी महापुरुष को!
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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