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________________ 412 द्वारिका दहन और कृष्ण का देहान्त है। हा दैव! मैं वसुदेव का पुत्र और कृष्ण का भाई क्यों हुआ ? यदि मेरे हाथ से ऐसा अमानुषिक काम कराना था, तो हे विधाता ! तूंने मुझे मनुष्य ही क्यों बनाया? हा! आज यह दिन देखने की अपेक्षा, नेमिप्रभु का वचन सुनते ही मैं मर गया होता, तो वह भी इससे हजार गुण अच्छा होता ! हे कृष्ण ! तुम्हारे जीवन के सामने मेरा जीवन किसी हिसाब में नहीं है। हे बन्धों ! यदि किसी तरह तुम्हारे जीवन की रक्षा हो सके तो मुझसे कहो, मैं तुम्हारे लिए प्राण तक विसर्जन कर सकता हूँ।' 99 कृष्ण ने कहा- - "भाई ! अब शोक करने से क्या लाभ? मैं या तुम कोई भी भवितव्यता को टाल नहीं सकते। करोड़ों यादवों में से केवल तुम्हीं जीते बचे हो, इसलिए जैसे भी हो, तुम यहां से चले जाओ और अपनी प्राण. रक्षा करो। यदि तुम ऐसा न करोंगे, तो बलराम मेरे वध से क्रुद्ध होकर तुम्हें मार डालेंगे। मैं चिन्ह स्वरूप अपना कौस्तुभ मणि तुम्हें देता हूँ | इसे लेकर तुम पाण्डवों के यहां चले जाओ। उनसे सब वृत्तान्त कहने पर वे तुम्हें अवश्य सहायता करेंगे। जाते समय कुछ दूर तक तुम उलटे पैरों से जाना, जिससे अनुसरण करने पर भी बलराम तुम्हारा पता न पा सकें। मैंने पाण्डवों को निर्वासन का दण्ड दिया था। इसलिए उनके जी दुःखित होंगे। तुम इसके लिए मेरी ओर से क्षमा प्रार्थना कर, मेरा अपराध क्षमा करा देना । " इस प्रकार कृष्ण के अनुरोध करने पर, जराकुमार उनके पैर से बाण निकालकर, कौस्तुभमणि लेकर शीघ्रता पूर्वक वहां से पाण्डु मथुरा के लिए रवाना हो गया। व्याकुल जराकुमार के चले जाने पर कृष्ण पैर की वेदना से हो उठे। उन्होंने उत्तर दिशा की ओर मुख कर, हाथ जोड़कर कहा—— - " अरिहन्त सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन सभी को मैं त्रिविध नमस्कार करता हूँ, कि जिन्होंने हम पापियों का त्यागकर इस पृथ्वी पर तीर्थ प्रवर्तित किया है । " - इतना कह, पैर पर पैर रख, उसे वस्त्र से ढंक कर, भूमि पर लेटे ही लेटे कृष्ण पुनः अपने मन में कहने लगे — “श्री नेमिनाथ भगवान, वरदत्तादिक गणधर, प्रद्युम्न शाम्ब आदि कुमार और सत्यभामा तथा रुक्मिणी.आदि मेरी स्त्रियों को धन्य है, जिन्होंने यथासमय गृहत्यागकर दीक्षा ले ली। मुझे यह सब
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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