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________________ 404 * द्वारिका दहन और कृष्ण का देहान्त होकर मनुष्य होंगे। वहां से देवगति में जाकर वे पुन: इसी भरत क्षेत्र में पुरुष होंगे और जब तुम अमम तीर्थकर होंगे, तब तुम्हारे तीर्थ में वे मोक्ष के अधिकारी होंगे। " इतना कह, नेमिभगवान विहार कर अन्यत्र चले गये । कृष्ण को भी तीर्थकर पद की प्राप्ति का हाल सुनकर अत्यन्त आनन्द हुआ और वे द्वारिका नगरी को लौट आये। वहां उन्होंने पुनः पहले जैसी घोषणा करवायी, जिससे नगर निवासी धर्मकार्य में विशेष रूप से प्रवृत्त रहने लगे । उधर कुछ दिनों के बाद द्वैपायन मुनि की मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद दूसरे जन्म में वह अग्निकुमार हुआ । यथा समय पूर्व वैर का स्मरण कर वह द्वारिका में आया, किन्तु वहां के लोगों की चतुर्थ, षष्ठ अष्टमादिक तथ देवपूजा आदि धर्म कार्य करते देख, वह उनका कुछ भी न बिगाड़ सका । इसके बाद अवसर की प्रतीक्षा करते हुए उसने ग्यारह वर्ष तक वहां वास किया। बारहवां वर्ष आरम्भ होने पर लोग समझने लगे कि हमारे धर्माचरण से द्वैपायन पराजित हो गया। यदि इतने दिनों में वह हमारा कोई अनिष्ट न कर सका, तो अब उससे डरने का कोई कारण नहीं | इस प्रकार विचारकर सब लोग धर्म कर्म छोड़, इच्छानुसार मद्यमांस का सेवन करने लगे । बस, लोगों के धर्म विमुख होते ही द्वैपायन को मौका मिल गया। अब आये दिन द्वारिका नगरी में नये नये उत्पात होने लगे। कभी मेघ की गर्जना सुनायी देती, कभी भूकम्प होता, कभी सूर्यमण्डल से अग्निवर्षा होती, कभी अचानक सूर्य्य या चन्द्रग्रहण होता, पत्थर की पुतलियां भी अस्वाभाविक रूप से हास्य करने लगती, कभी चित्राङ्कित देव भी क्रोध दिखाते, कभी व्याघ्र आदिक हिसंक पशुनगर में विचरण करते और कभी द्वैपायन असुर स्वप्न में लोगों को ऐसा दिखता मानो उसका शरीर रक्त वस्त्र से ढंका हुआ है और वे कीचड़ में सने हुए दक्षिण दिशा की ओर खिंचे जा रहे हैं। कृष्ण और बलराम के हल मूशल तथा चक्रादिक अस्त्र भी इसी समय अचानक नष्ट हो गये। इन सब उत्पातों के कारण नगर में आतङ्क छा गया और सब लोग समझ गये कि अब विनाशकाल समीप आ गया है। उपरोक्त प्रकार के आरम्भिक उपद्रवों के बाद द्वैपायन ने शीघ्र ही संवर्तक
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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