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390 * द्रोपदी-हरण कहा-"मैंने अपने जीवन में कोई ऐसा कार्य नहीं किया, जो उल्लेख करने योग्य हो। कृष्ण ने कहा कुछ तो किया ही होगा। अच्छी तरह सोचकर उतर दो।
वीर ने हँसकर कहा-"भगवन् ! मैंने एक बार एक बेर पर बैठे हुए कीड़े को पत्थर मारकर भूमि पर गिरा दिया था, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी थी। इसी तरह गाडी की लीक में बहते हुए पानी को एकबार मैंने बायें पैर से रोक दिया था, जिससे उसको अपना रास्ता बदल देना पड़ा था। एकबार एक घड़े में घुसी हुई मक्खियों को भी मैंने बहुत देर तक बन्द कर, रोक स्क्खा था। हे भगवान् ! मैंने अपने जीवन में ऐसी ही बहादुरियों के काम किये हैं।" ___इस पर कृष्ण ने हँसते हुए कहा-“भाई! यह बातें भी कोई कम गौरव की नहीं हैं। कल तुम राजसभा में आना। वहाँ सबके सामने मैं तुम्हें सम्मानित . करूंगा।"
कृष्ण के आदेशानुसार वीर दूसरे दिन उनकी राजसभा में उपस्थित , हुआ। कृष्ण ने सम्मान पूर्वक उसे अपने पास बैठाकर सभाजनों से कहा"यह वीर यथा नाम तथा गुण है। इसकी वीरता के लिए इसकी जितनी प्रशंसा की जाय, उतनी ही कम है। इसने एक बार बदरी वन में रक्त फन वाले भयंकर नाग को एक ढेले से मार डाला था। एक बार इसने चक्र से खुदी हुई कलुष जल वाली गंगा की धारा को बायें पैर से रोक दिया था। इसी तरह एकबार कलशीपुर में गर्जना करती हई सेना को केवल एक हाथ से इसने दीर्घकाल तक रोक रक्खा था। ऐसे वीरतापूर्ण कार्य संसार में विरले ही मनुष्य कर सकते हैं। मैं इन सब कार्य के कारण वीर से अपनी एक पुत्री का विवाह कर उसे सम्मानित करना चाहता हूँ।”
कृष्ण के यह वचन सुनकर सब लोग वीर की मुक्तकंठ से प्रशंसा करने लगे। इसके बाद कृष्ण ने वीर की इच्छा न होने पर भी उसके साथ केतु मंजरी का विवाह कर दिया। वीर भय से कांपता हुआ उस राजकन्या को अपने घर ले गया। वहां वह कन्या रातदिन पलंगपर सोया करती और कोई कार्य भी नहीं करती। बेचारा वीर पति होने पर भी उसका मोल लिया हुआ गुलाम बन गया
और सब काम धन्धा छोड़कर अपना सारा समय उसी की सेवा में व्यतीत करने लगा।