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श्री नेमिनाथ-चरित * 389 एकबार कृष्ण परिवार समेत, नेमिभगवान को वन्दना करने गये। उस समय भगवन्त के मुख से यतिधर्म सुनकर उन्होंने कहा—“हे भगवन् ! मैं यतिधर्म पालन करने में असमर्थ हूँ, तथापि दूसरों को दीक्षा और उपदेश देने की मैं प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि कोई दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट करेगा, तो मैं उसमें बाधा न दूंगा और अपने पुत्र की भांति उसका दीक्षा महोत्सव करूंगा।" ___प्रभु के निकट ऐसा अभिग्रह लेकर कृष्ण अपने राज भवन को लौट आये। इसके कुछ ही दिन बाद एक दिन कृष्ण की कई युवती कन्याएँ उनको प्रणाम करने के लिए उनके पास आयी। उन सबों की अवस्था विवाह करने योग्य हो चुकी थी। इसलिए कृष्ण ने उनसे पूछा- "तुम लोग रानी होना पसन्द करती हो या दासी होना? कन्याओं ने उत्तर दिया-"हमें रानी होना पसन्द है।” इस पर कृष्ण ने कहा- “तब तुम लोग नेमिप्रभु के पास जाकर दीक्षा ले लो। वैसा करने पर तुम्हें किसी का दासत्व न करना पड़ेगा और तुम लोग रानी की तरह स्वतन्त्रता पूर्वक अपने दिन बिता सकोगी।" . ___ पिता के यह वचन सुनकर कृष्ण की कन्याएँ असमंजस में पड़ गयी और अन्त में उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर सहर्ष दीक्षा ले ली।
. एक दिन कृष्ण की एक रानी ने अपनी पुत्री केतुमंजरी से कहा“बेटी ! तुझसे जब तेरे पिता पूछे कि तुझे रानी होना पसन्द है या दासी होना, तब तूं नि:शंक होकर कह देना, कि मुझे दासी होना पसन्द है, रानी होना पसन्द नहीं।"
इस तरह पुत्री को सिखा पढ़ाकर माता ने उसे पिता के पास भेजा। वहां कृष्ण के पूछने पर उसने उनको वहीं उत्तर दिया जो उसे उसकी माता ने सिखाया था। उसे सुनकर कृष्ण विचार में पड़ गये। वे अपने मन में कहने लगे-“पुत्रियों का विवाह कर देने वे जन्म और मृत्यु के चक्कर में पड़ जायगी और कभी भी आत्मकल्याण कर न सकेगी। इसलिए यह कार्य तो सर्वथा अनुचित ही है। अब मुझे कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे मेरी • अन्य पुत्रियाँ माताओं की बात मानकर ऐसा उत्तर न दें।"
___ यह सोचकर कृष्ण ने वीर बुनकर को अपने पास बुलाकर उससे पूछा-“हे वीर! तूने अपने जीवन में कोई उत्तम कार्य किया है ?" वीर ने