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________________ 388 द्रोपदी - हरण एक बार मेघ की भांति जगत को तृप्त करने वाले नेमिनाथ भगवान वर्षा ऋतु के पहले द्वारिका में पधारे। उस समय एक दिन कृष्ण ने उनकी सेवा करते हुए पूछा—“हे भगवन् ! आप और अन्यान्य मुनि वर्षाकाल में विहार क्यों नहीं करते?" प्रभु ने उत्तर दिया – “ वर्षाकाल में पृथ्वी नाना प्रकार के जीवों से व्याप्त होती है, इसलिए जीवों को अभय देने वाले मुनि उस समय विचरण नहीं करते।" 66 कृष्ण ने कहा- 'आपका कहना यथार्थ है । वर्षाकाल में बार-बार परिवार सहित आवागमन करने से मेरे द्वारा भी अनेक जीवों का नाश होता होगा, इसलिए अब मैं भी वर्षा के दिनों में बाहर नहीं निकलूंगा। इस प्रकार अभिग्रह लेकर कृष्ण अपने वासस्थान को चले गये । उन्होंने वहां पहुंचते ही द्वारपालों को आज्ञा दे दी जब तक वर्षाकाल रहे, तब तक किसी को मेरे पास न आने दिया जाय । परन्तु कृष्ण की यह आज्ञा उनके एक भक्त के लिए बहुत ही कष्टदायक हो पड़ी। बात यह थी, कि द्वारिका नगरी में वीर नामक एक बुनकर रहता था । वह कृष्ण का इतना भक्त था, कि उनके दर्शन किये बिना कदापि भोजन नहीं करता था। परन्तु जिस दिन से कृष्ण ने द्वारपालों को उपरोक्त आज्ञा दी, उस दिन से उसके आने जाने में भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। वीर उस दिन कृष्ण के द्वार पर आया और जब उसे अन्दर जाने की आज्ञा न मिली, तब वह वहीं बैठकर कृष्ण की पूजा करने लगा, परन्तु उनके दर्शन न मिलने के कारण उसने अन्न ग्रहण न किया। इसी तरह उसने वर्षाकाल के चार महीने बिता दिये । न कृष्ण घर से बाहर निकले, न उसने भोजन किया । वर्षाकाल पूर्ण होने पर कृष्ण : 'अपने महल से बाहर निकले। उस समय अन्यान्य राजाओं के साथ वीर भी उनकी सेवा में उपस्थित हुआ । उसे देखकर कृष्ण ने जब उसकी दुर्बलता का कारण पूछा, तब द्वारपालों ने उनको सब हाल कह सुनाया। कृष्ण उसे सुनकर अत्यन्त दु:खित हुए और उन्होंने उसे किसी भी समय अपने पास आने की आज्ञा दे दी। अपने ऊपर से यह प्रतिबन्ध हट जाने के कारण वीर को अत्यन्त आनन्द हुआ और वह दूने उत्साह से उनकी भक्ति करने लगा । .
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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