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श्री नेमिनाथ-चरित * 385 रथ पर बैठा हूँ और तुम पैदल हो, इसलिए मेरी रथशाला से तुम पहले एक रथ ले आओ, तब मेरा और तुम्हारा युद्ध हो सकता है।"
देव ने कहा- “मुझे रथ और गजादिक की जरूरत नहीं है। न मुझे बाहु युद्ध आदि दूसरे युद्ध पसन्द हैं। मैं तो तुम्हारे साथ पीठ युद्ध कर सकता
___ . देव का यह वचन सुनकर कृष्ण हँस पड़े। उन्होंने कहा- "भाई, तुम जीते और मैं हारा। तुम खुशी के साथ अश्व को ले जा सकते हो, क्योंकि सर्वस्व जाने पर भी मैं नीच युद्ध को पसन्द नहीं कर सकता।”
कृष्ण के यह वचन सुनकर वह देवता प्रसन्न हो उठा। उसने कृष्ण की इन्द्र से प्रशंसा का सब हाल निवेदन करते हुए कहा—“हे महाभाग! मैंने इन्द्र के मुख से आपकी जैसी प्रशंसा सुनी थी वैसे ही आप हैं। इसलिए मैं आप पर बहुत ही प्रसन्न हूँ, यदि आप मुझसे कोई वर मांगना चाहे तो, खुशी से मांग सकते हैं।
कृष्ण ने कहा- “मुझे किसी वस्तु की जरूरत नहीं है, परन्तु इस समय मेरी द्वारिका नगरी रोग से पीड़ित रहती है। यदि आप कुछ देना ही चाहते हैं, तो मुझे कोई ऐसी वस्तु दीजिए जिससे रोग का यह प्रकोप शान्त हो जाय।"
. कृष्ण की यह याचना सुनकर उस देव ने कृष्ण को एक भेरी देते हुए कहा-“यदि आप इसे छ: महीने के अन्तर से सारे नगर में बजवाते रहेंगे,
तो जहां तक इसका शब्द पहुँचेगा, वहां तक के सब रोग नष्ट हो जायेंगे और ..छ: महीन तक कोई नये रोग पैदा न होंगे। यह कहते हुए वह देव चला गया।
तदनन्तर कृष्ण ने शीघ्र ही नगर में वह भेरी बजवा दी. जिससे समस्त रोगों का प्रकोप शान्त हो गया। इसके बाद उन्होंने वह भेरी एक आदमी को
सुपर्द कर दी और उसका गुण बतलाकर उसे सूचना दे दी, कि बड़े यत्न से . सुरक्षित स्थान में रक्खे रहना। .. कुछ दिनों के बाद इस मेरी की ख्याति सुनकर दूर देशान्तर से एक
धनीमानी रोगी द्वारिका नगरी में आया। वह दाहज्वर से पीड़ित था। इसलिए उसने भेरी के रक्षक से कहा- "हे भद्र! मैंने सुना है कि इसके सेवन से मेरा