________________
384 द्रोपदी - हरण
बलराम का पौत्र एवम् निषध का पुत्र सागरचन्द्र कुमार पहले ही से विरक्त था। इसलिए उसने इस समय अणुव्रत ग्रहण कर प्रतिमा धारण की और नगर के बाहर श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग ग्रहण किया। नभसेन उसके छिद्र देखने के लिए सदा ही उसके पीछे पड़ा रहता था । इसलिए उसने सागरचन्द्र के पास जाकर कहा—“अरे पाखण्डी ! यह तूं क्या कर रहा है। ले, अब, कमलामेला के हरण का फल भी चख ले !” इतना कह, दुष्टाशय नभसेन ने उसके शिर पर फूटा हुआ घड़ा रख, उसे चिता की अग्नि से भर दिया। सुबुद्धि सागरचन्द्र ने यह सब शान्तिपूर्वक सहन कर, पंच परमेष्ठी के स्मरण पूर्वक' अपना शरीर त्यागकर देवलोक को गमन किया।
एकबार इन्द्र ने अपनी सभा में कहा- - " भरतक्षेत्र में कृष्ण दोषों कोत्यागकर सदा गुणकीर्तन ही करते हैं और युद्ध में भी न्याय तथा नीति से काम लेते हैं ।" इन्द्र की इन बातों पर विश्वास न आने के कारण एक देव द्वारिका नगरी में आया। उस समय कृष्ण रथ पर बैठकर क्रीड़ा करने के लिए बाहर आ रहे थे। यह देख उस देव ने अपनी माया से मरा हुआ एक कुत्ता बनाकर उनके रास्ते में डाल दिया । उस कुत्ते का रंग काला था। मरने के बाद वह और भी बदसूरत हो गया था। उसके मुख से इतनी दुर्गन्ध निकल रही थी, कि जो लोग उधर से निकलते थे, वे नाक भौं चढ़ाये बिना न रहते थे । किन्तु कृष्ण का रथ जब उसके पास से निकला, तब उन्होंने उसको देखकर कहा
(6
“ अहो ! इस काले कुत्ते के दांत कितने सुन्दर हैं। दूर से देखने पर ऐसा ज्ञात होता है, मानो मरकत रत्न के थाल में मोती सजाये हुए हैं। "
इसके बाद उस देव ने अश्व हरण करने वाले का वेश धारण कर कृष्ण का एक सुन्दर अश्व चूरा लिया। इस पर अनेक सैनिकों ने उसका पीछा किया, किन्तु उसने उन सबों को पराजित कर दिया। कृष्ण को यह हाल मालूम होने पर उन्होंने खुद उसका पीछा किया। उसके समीप पहुँचने पर उन्होंने उससे पूछा - "तुम मेरे अश्व को क्यों हरण किये जा रहे हो ?”
देवने कहा – “मुझे इसकी आवश्यकता है, इसलिए मैं इसे हरण किये - जा रहा हूँ। यदि तुम इसे छीनना चाहते हो, तो तुम्हें युद्ध करना होगा । " कृष्ण ने कहा – “अच्छी बात है, मैं युद्ध के लिए तैयार हूँ, परन्तु मैं