SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 382 द्रोपदी - हरण था। वह सब लोग भी कृष्ण का अनुकरण कर एक ईंट देवमंन्दिर में रख आये। फलतः सब ईंटें देखते ही देखते समाप्त हो गयी उस वृद्ध ब्राह्मण को उस प्रकार कृतार्थ कर कृष्ण नेमिभगवान के निकट जा पहुँचे । वहां पर कृष्ण ने चारों ओर अपनी दृष्टि दौड़ायी, परन्तु गजसुकुमाल कहीं भी उन्हें दिखायी न दिया । उसे देखने के लिए ये पहले ही से उत्कण्ठित हो रहे थे, अब उनकी उत्कण्ठा और भी बढ़ गयी। उन्होंने मि प्रभु से पूछा - "हे भगवन् ! मेरा भाई गजसुकुमाल कहां है ?” · गजसुकुमाल भगवान ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सोमशर्मा की भेंट से लेकर के मोक्ष गमन तक का सारा हाल कृष्ण को कह सुनाया। उसे सुनकर कृष्ण मूर्च्छित हो गये। थोड़ी देर बाद जब उनकी मूर्च्छा दूर हुई, तब उन्होंने फिर पूछा - "हे प्रभो ! मेरे भाई का वध करने वाला इस समय कहां है और इस कार्य के लिए कौनसा दण्ड देना उचित है ? " भगवान ने कहा – “हे कृष्ण । सोमशर्मा पर तुम्हें क्रोध न करना चाहिए। वह तो तुम्हारे भाई को तुरन्त मोक्ष दिलाने में सहायक हुआ है। जो सिद्धि दीर्घकाल में सिद्ध होने वाली होती है, वह भी किसी प्रकार की सहायता के योग से, तुरन्त सिद्ध हो जाती है। ठीक उसी तरह, जिस तरह वृद्ध ब्राह्मण की ईंटे ला देने से, उसकी कार्यसिद्धि तुरन्त हो गयी । यदि सोमशर्मा तुम्हारे भाई के प्रति ऐसा व्यवहार न करता, तो उसे कालक्षेप बिना तुरन्त मोक्ष की प्राप्ति कैसे होती ? यहां से वापस लौटते समय, तुम्हें नगर में प्रवेश करते देख, अत्यन्त भय से व्याकुल हो वह अपने आप अपना प्राण त्याग देगा। अतएव तुम्हें उसको दण्ड देने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी । " इस पर कृष्ण ने पुन: पूछा - "हे प्रभो ! मेरे भाई और सोमशर्मा की यह शत्रुता इसी जन्म की थी या पूर्वजन्म की ? ' भगवान ने कहा – “हे कृष्ण ! पूर्वजन्म में तुम्हारा भाई एक स्त्री था। उसकी सपत्नी एक दिन अपने छोटे पुत्र को उसके पास छोड़कर कार्यवश कहीं बाहर गयी। उसके जाने पर ईर्ष्यावश उस स्त्री ने तुरन्त चूल्हे से निकली हुई गरम रोटी उस बालक के शिर पर रख दी, जिससे उस कुसुम समान कोमल बालक की मृत्यु हो गयी। घर आने पर उसकी माता ने जब यह हाल देखा, तो
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy