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30 * पांचवां और छठा भव
बस, फिर क्या था? दोनों एक-दूसरे से भिड़ पड़े। दोनों ही युद्ध विद्या में निपुण थे, इसलिए एक-दूसरे पर अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करने लगे। यह युद्ध दीर्घकाल तक होता रहा, किन्तु कोई किसी को पराजित न कर सका। अन्त में वे दोनों अस्त्र-शस्त्र छोड़कर भुजा युद्ध करने लगे। भुजायुद्ध में भी राजकुमार ने उस विद्याधर के दाँत खट्टे कर दिये। उसने जब देखा कि राजकुमार को किसी तरह भी पराजित करना सहज नहीं है, तब उसने उसे नागपाश से जकड़ने की चेष्टा की, किन्तु राजकुमार ने उसे भी पुरानी रस्सी की तरह तोड़ डाला। यह देखकर विद्याधर ने पुन: अपनी विद्याओं का स्मरण कर अस्त्र और शस्त्रों का सहारा लिया, परन्तु सब व्यर्थ हो गये। इसी तरह सारी रात युद्ध होता रहा। अन्त में सूर्योदय होने पर राजकुमार ने अपने खड्ग से विद्याधर के सिर पर.एक ऐसा प्रहार किया, कि वह मूर्च्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। अपराजित अपने नामानुसार अपराजित ही रहा। उसकी विजय और विद्याधर की घोर पराजय
विजयी राजकुमार की शारीरिक शोभा इस समय दर्शनीय हो रही थी। वह धीर वीर और सुन्दर तो था ही, इस समय विजयलक्ष्मी ने वरण कर मानो उसे और भी सुन्दर बना दिया था, विद्याधर के पराजित होने पर उस सुन्दरी ने कृतज्ञतासूचक दृष्टि से राजकुमार के मुख की ओर देखा। उसने कुछ बोलने की इच्छा की, किन्तु उसके मुख से एक भी शब्द न निकल सका। वह तो अपनी रक्षा के लिए कृतज्ञता प्रकट करना चाहती थी, परन्तु विधाता का विधान कुछ
ओर ही था। राजकुमार का अलौकिक रूप देखते ही वह तन मन से उस पर मुग्ध हो गयी। उसका हृदय उसके हाथ से निकल गया। वह अपनी आँखें संकुचाकर व्याकुलतापूर्वक जमीन की ओर देखने लगी। उसे भी विद्याधर की भाँति अपने तन-मन कि खबर न थी। परन्तु विद्याधर और उसमें यह अन्तर था कि विद्याधर चेतन रहित था वह चेतना होते हुए भी मूर्च्छित सी हो रही थी। ___ वीरता और क्रूरता भिन्न-भिन्न चीजें हैं। राजकुमार अपराजित वीर होने पर भी हृदयहीन न थे। उन्होंने शीघ्र ही समुचित उपचार कर उस विद्याधर को स्वस्थ बनाया। उसे भलीभाँति होश आने पर उन्होंने कहा-“यदि अब भी तुम्हें युद्ध करने का हौंसला हो, तो मैं तैयार हूँ।"