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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 29 धूमधाम से.आनन्दोत्सव मनाया गया। राजकुमार अपराजित अपने मित्र मन्त्रीपुत्र के साथ दीर्घकाल तक विविध सुखों का रसास्वादन करते रहे। ____बीच बीच में उन्होंने कई बार राजा से विदा मांगी, परन्तु स्नेहवश कोसलराज ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी। दोनों ने जब देखा कि इस तरह कोसलराज से विदा ग्रहण करना सहज नहीं है, तब एक दिन वे चुपचाप वहाँ से चल पड़े। जिस समय राजकुमार अपराजित और मन्त्री-पुत्र कोसलराज नगर से बाहर निकले, उस समय रात के बारह बज चुके थे। चारों ओर घोर सन्नाटा था। नगरनिवासी निद्रादेवी की गोद में पड़े हुए आनन्दपूर्वक विश्राम कर रहे थे, इसलिए उन दोनों को नगर-त्याग करने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़ा। दोनों सहर्ष वहाँ से मार्ग पर आगे बढ़े। रास्ते में एक स्थान पर कालीदेवी का मन्दिर था। उसके निकट पहुँचने पर राजकुमार ने किसी के रोने की आवाज सुनी। उन्हें ऐसा मालूम हुआ मानो कोई स्त्री यह कहकर रो रही है कि-"क्या यह भूमि पुरुष रहित हो गयी है? क्या इस पृथ्वी पर अब कोई ऐसा वीर नहीं, जो इस हत्यारे से मेरी रक्षा कर सके ?" वे शीघ्र ही लपक कर उस स्थान में पहुँचे। उन्होंने देखा कि मन्दिर के अन्दर एक अग्निकुण्ड के पास एक स्त्री बैठी हुई है और उसी के सामने एक विद्याधर नंगी तलवार लिये खड़ा है। सुन्दरी उसके भय से थर-थर कांप रही • थी। राजकुमार को देखकर वह पुन: अपनी प्राण-रक्षा के लिए जोर से चिल्ला उठीं। राजकुमार ने उसकी ओर आश्वासन भरी दृष्टि से देखकर उस विद्याधर से कहा-“हे नराधम ! इस अबला पर हाथ उठाने से तुझे लज्जा नहीं आती? यदि तुझे अपने बल पर कुछ भी घमण्ड हो, तो मुझसे युद्ध करने को तैयार हो जा! अब मैं तुझे कदापि जीवित न छोडूंगा।" - राजकुमार की यह ललकार सुनकर पहले तो वह विद्याधर कुछ लज्जित हआ, किन्तु इसके बाद उसने कहा-“हे युवक! मैं नहीं जानता कि तुम कौन .. हो, किन्तु मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूँ। मैं समझता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु ही तुम्हें यहाँ खींच लायी है और इसीलिए तुमने मेरे कार्य में बाधा देने का साहस किया है।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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