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________________ 28 * पांचवां और छठा भव का यह पराजय-समाचार सुनकर कोसलराज आग बबूला हो उठे। इस बार वे स्वयं बहुत बड़ी सेना लेकर उन युवकों को दण्ड देने के लिए उनके सामने आकर उपस्थित हुए। राजकुमार ने इस बार कठिन मोर्चा देखकर उस चोर को तो मन्त्री-पुत्र के सुपुर्द कर दिया और वह अकेला ही उस समुद्र समान सेना में घुसकर उसका संहार करने लगा। शीघ्र ही उसे कोसलराज की सेना में एक ऐसा हाथी दिखायी दिया, जिस पर एक महावत के सिवा और कोई सवार न था। वह सिंह की तरह तड़ककर उसी क्षण उस हाथी के दांतों पर चढ़ गया और एक ही हाथ से उसके कन्धे पर बैठे हुए महावत का काम तमाम कर डाला। इसके बाद वह उसी हाथी पर बैठकर बड़ी निपुणता के साथ शत्रु-सेना से युद्ध करने लगा। ___ इसी समय कोसलराज के एक मन्त्री की दृष्टि उस पर जा पड़ी। उसे देखते ही उसने राजा से कहा-“हे राजन! इस युवक को तो मैं पहचानता हूँ। यह राजा हरिनन्दी का पुत्र है!" . मन्त्री के यह वचन सुनकर राजा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने उसी समय संकेत कर अपनी सेना को युद्ध करने से रोक दिया। इसके बाद सैनिकों से घिरे हुए राजकुमार के पास पहुँच कर उन्होंने कहा-“हे कुमार! तुम तो हमारे मित्र हरिनन्दी के पुत्र हो। तुम्हारा बल और रणकौशल देखकर मैं बहुत ही सन्तुष्ट हुआ हूँ। सिंह-शावक के सिवा गजराज का मस्तक और कौन विदीर्ण कर सकता है ? हे महानुभाव! तुमसे युद्ध करना हमारे लिये शोभाप्रद नहीं है। तुम हमारे घर चलो और हमारा आतिथ्य ग्रहण करो! मैं अपने पुत्र और अपने मित्र के पुत्र में कोई अन्तर नहीं समझता। इतना कह, राजकुमार को गले लगा, हाथी पर बैठाकर कोसलराज उसे अपने महल में ले गये। मन्त्री-पुत्र भी उस शरणागत डाकू को छोड़कर राजकुमार के साथ कोशलराज के महल में आया। वहाँ पर दोनों ने कई दिन तक राजा का आतिथ्य ग्रहण किया। कोसलराज के कनकमाला नामक एक कन्या भी थी। उसकी अवस्था विवाह योग्य हो चुकी थी इसलिए कोसलँराज ने इस अवसर का लाभ उठाकर राजकुमार अपराजित से उसका विवाह कर दिया। इससे उन सब के आनन्द में सौगुनी वृद्धि हो गयी। नगर में कई दिनों तक बड़ी
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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