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श्री नेमिनाथ-चरित * 27 वास्तव में यह स्थान बहुत ही मनोरम और दर्शनीय है। यहाँ आते ही मानो सारी थकावट दूर हो गयी। मुझे तो इच्छा होती है कि मैं यहीं पड़ा रहूँ और नगर लौटने का नाम तक न लूँ।" ___ जिस समय राजकुमार और मन्त्रीपुत्र में इसी तरह की बातचीत हो रही थी, उसी समय एक अपरिचित पुरुष राजकुमार के पास आकर खड़ा हो गया। उसका समूचा शरीर भय से कांप रहा था। राजकुमार को देखते ही वह गिड़गिड़ा कर उससे अपनी रक्षा की प्रार्थना करने लगा। राजकुमार ने उसे आश्वासन देकर उससे शान्त होने को कहा। यह देखकर मन्त्री-पुत्र ने राजकुमार से कहा, "हे मित्र! इसकी रक्षा करने के पहले हमें एक बार विचार कर लेना चाहिए। यदि यह अन्यायी हो तो इसकी रक्षा करना उचित नहीं।" ___अपराजित ने कहा-“यह अन्यायी हो या न्यायी, हमें इसका विचार न करना चाहिए। शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियों का परम धर्म है।" - राजकुमार की यह बात अभी पूरी भी न होने पायी थी कि मारो मारो' पुकारते और उसका पीछा करते हुए कई राजकर्मचारी वहाँ आ पहुँचे। उनके हाथ में नंगी तलवारें थी। उन्होंने राजकुमार और मन्त्री-पुत्र से कहा-"आप लोग जरा दूर हट जाइए। हम इस डाकू सरदार को मारना चाहते हैं। इसने हमारे समूचे नगर को लूटकर तबाह कर डाला है।" . उनके यह वचन सुनकर राजकुमार ने हँसते हुए कहा-“यह हमारी शरण में आया है। अब इसे इन्द्र भी नहीं मार सकते। आप लोगों का तो कहना ही
. क्या है?" -
- यह सुनकर राजकर्मचारी आगबबूला हो उठे। वे अपनी तलवार खींचकर
उस डाकू सरदार की ओर झपट पड़े। परन्तु राजकुमार भी असावधान न थे। वे भी अपनी तलवार खींचकर उन राज-कर्मचारियों पर टूट पड़े। राज-कर्मचारियों में इतना साहस कहाँ कि वे सिंह-शावक के सामने ठहर सकें। दो चार हाथ
दिखाते ही सारा मैदान साफ हो गया। वे भागकर अपने स्वामी कोसलराज के . पास पहुंचे और उन्हें सारा हाल कह सुनाया। वे भी डाकू के रक्षकों पर बहुत नाराज हुए। उन्होंने उन्हें पराजित करने के लिए अपनी विशाल सेना रवाना की, परन्तु अपराजित ने देखते-ही-देखते उनके भी दांत खट्टे कर दिये। अपनी सेना