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________________ 26 तीसरा परिच्छेद पांचवां और छठा भव . पश्चिम महाविदेह के पद्म नामक विजय में सिंहपुर नामक एक नगर था। वहाँ हरिनन्दी नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम प्रियदर्शना था। स्वर्ग से च्युत होने पर चित्रगति के जीव ने शुभ स्वप्न से सूचित उसके उदर से पुत्र रूप में जन्म लिया। राजा ने बड़े प्रेम से उसका जन्मोत्सव मनाया और उसका नाम अपराजित रखा। बड़े होने पर उन्होंने निपुण शिक्षा गुरुओं द्वारा उसे विविध विद्या और कलाओं की शिक्षा दिलवायी। क्रमश: वह किशोरावस्था अतिक्रमण कर यौवन की वसन्त-वाटिका में विचरण करने लगा। - राजकुमार अपराजित की मन्त्री-पुत्र विमलबोध से घनिष्ट मित्रता थी, . अत: एक दिन वे दोनों क्रीड़ा करने के लिए घोड़े पर सवार हो नगर के बाहर निकल गये। दुर्भाग्यवश उनके घोड़े अशिक्षित थे, इसलिए वे जंगल की ओर भाग गये। अन्त में, जब वे भागते थक गये, तब एक स्थान में रुक गये। राजकुमार और मन्त्री-पुत्र भी श्रान्त और क्लान्त हो उठे थे, इसलिए शीघ्र ही वे अपने-अपने घोड़े पर से उतर पड़े और एक वृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे। जब वे कुछ स्वस्थ हुए तब आसपास के रमणीय दृश्यों को देखकर अपराजित ने विमलबोध से कहा-“हे मित्र! यदि ये अश्व हम लोगों को यहाँ न भगा लाये होते तो यह सुन्दर स्थान हम लोग कैसे देख पाते? यदि हम लोग इस स्थान में आने के लिए माता-पिता की आज्ञा लेने जाते, तो मेरा विश्वास है कि वे भी इसके लिए हमें कदापि आज्ञा न देते!" . मन्त्री-पुत्र ने कहा-“हाँ, राजकुमार! आप का कहना बिल्कुल ठीक है!
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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