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________________ 378 * द्रोपदी-हरण इधर नेमिनाथ भगवान धराधाम को पावन करते हुए कुछ दिनों के बाद भद्दिलपुर नामक नगर में पधारे। वहां सुलसा और नाग के छ: पुत्र थे। यह वही छ: पुत्र थे, जो देवकी के उदर से उत्पन्न हुए थे और जिन्हें हरिणैगमेषी देव ने सुलसा को दिये थे। उनमें से प्रत्येक ने बत्तीस बत्तीस कन्याओं से विवाह किया था, किन्तु नेमिनाथ भगवान का उपदेश सुनकर उन्होंने दीक्षा ले ली थी वह सब चरम शरीरी द्वादशांगी को धारण करने वाले और परम तपस्वी थे। नेमिनाथ भगवान पर असीम श्रद्धा और भक्ति होने के कारण वे सदा उन्हीं के साथ विचरण किया करते थे। कुछ दिनों के बाद नेमिजिन विहार करते हुए द्वारिका नगरी में आये। वहां उन्होंने पूर्ववत् सहस्रामवन में वास किया। देवकी के उन छ: पुत्रों ने भी इसी समय छट्ठ तप किया और वे पारणे के लिये दो-दो का संघाटंक बताकर द्वारिका नगरी में गये। इनमें से पहले अनिकयश और अनन्तसेन नामक दो जन देवकी के घर गये। उनका आकार प्रकार कृष्ण के समान देखकर देवकी को' अत्यन्त आनन्द हुआ और उसने सिंहकेसरी मोदक वहोराया। उनके चले जाने पर अजितसेन और निहथशत्रु नामक दो भाई देवकी के यहां आये। उनको भी देवकी ने आनन्दपूर्वक मोदक वहोराया। किन्तु उनके चले जाने पर उसी तरह देवयश और शत्रुसेन भी आ गये। उनका आकार प्रकार भी कृष्ण के ही सदृश था। इसलिए देवकी ने इस बार हाथ जोड़कर उनसे पूछा-"क्या आप लोग रास्ता भूलकर बार-बार यहां आते हैं या मैं ही आप लोगों को पहचानने में भूल करती हूँ ? अथवा, ऐसी बात तो नहीं है कि इस स्वर्ग तुल्य नगरी में मुनियों को अन्नपानादि न मिलने के कारण उन्हें बार-बार मेरा ही दरवाजा खटखटाना पड़ता है?" उन दोनों ने उत्तर दिया- "हम रास्ता भूलकर बार-बार यहां नहीं आये। इस नगरी में आहार पानी की भी कमी नहीं है, और लोग न ही भाव रहित है, परन्तु आपको ऐसा सन्देह होने का कारण हमारा रूप ही है यानि हम लोग समान आकृति के हैं। हम लोग छ: भाई हैं। हमारे माता-पिता का नाम सुलसा और नाग है। वे भद्दिलपुर नामक नगर में रहते हैं। हम सब भाइयों ने नेमिप्रभु का उपदेश सुनकर दीक्षा ले ली है। इस समय के लिए दो-दो के
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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